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सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्ती शार्दूल विक्रीडित-तस्यासीत्सुविशुद्धदृष्टिविभव: सिद्धान्तपारं गतः ।।
शिष्यः श्रीजिनचन्द्रनामकलितश्चारित्रभूषान्वितः ।। ..... शिष्यो भास्करनन्दिनामविबुधस्तस्याभवत्तत्त्ववित् ।।
तेनाकारि सुखादिबोधविषया तत्त्वार्थवृत्तिः स्फुटम् ॥४॥ शशधरकरनिकरसतारनिस्तलतरलतलमुक्ताफलहारस्फारतारानिकुरुम्बविम्बनिर्मलतरपरमोदार शरीरशुद्धध्यानानलोज्ज्वलज्वालाज्वलितघनघातीन्धनसङ्घातसकलविमलकेवलालोकितसकललोकालोकस्वभावश्रीमत्परमेश्वरजिनपतिमत विततमतिचिदचित्स्वभावभावाभिधानसाधितस्वभावपरमाराध्यतममहासद्धान्तः श्रीजिनचन्द्रभट्टारकस्तच्छिध्यपडितश्रीभास्करनन्दिविरचितमहाशास्त्रतत्त्वार्थवृत्ती सुखबोधायां दशमोऽध्यायस्समाप्त ।
॥समाप्तोयं ग्रन्थः ।।
जिनचन्द्र नामके शिष्य हुए हैं, कैसे हैं वे शिष्य ? विशुद्ध है सम्यक्त्वरूप वैभव जिनके तथा जो सिद्धांत के पारगामी हैं, और चारित्ररूपी आभूषण से युक्त हैं। उन जिनचंद्र के शिष्य श्री भास्करनन्दी नामके विबुध हुए हैं जो कि तत्त्वों के ज्ञाता हैं, उन भास्करनन्दी ने सुखबोधा नाम वाली तत्त्वार्थ सूत्र की टीका रची है ॥४॥....
जो चन्द्रमा को किरण समूह के समान विस्तीर्ण, तुलना रहित मोतियों के विशाल हारों के समान एवं तारा समूह के समान शुक्ल निर्मल उदार ऐसे परमौदारिक शरीर के धारक हैं, शुक्ल ध्यान रूपी अग्नि की उज्ज्वल ज्वाला द्वारा जला दिया है घाती कर्म रूपी ईन्धन समूह को जिन्होंने ऐसे तथा सकल विमल केवलज्ञान द्वारा संपूर्ण लोकालोक के स्वभाव को जानने वाले श्रीमान परमेश्वर जिनपत्ति के मत को जानने में विस्तीर्ण बुद्धि वाले, चेतन अचेतन द्रव्यों को सिद्ध करने वाले परम आराध्य भूत महासिद्धान्त ग्रन्थों के जो ज्ञाता हैं ऐसे श्री जिनचन्द्र भट्टारक हैं उनके शिष्य पंडित श्री भास्करनंदी विरचित सुख बोधा नामवाली महा शास्त्र तत्त्वार्थ सूत्र की टीका में दसवां अध्याय पूर्ण हुआ।
॥ इस प्रकार अन्य सम्पूर्ण हुमा ।।