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________________ ५६४ ] : सुखबोधायां तत्त्वार्यवृत्ती कालविभागस्त्रिविधः, उत्सर्पिणी, अवसर्पिणी, अनुत्सपिण्यनवसर्पिणी चेति । सर्वस्तोका उत्सर्पिणीसिद्धाः। ततोऽवसर्पिणीसिद्धाः विशेषाधिकाः । ततोऽनुत्सपिण्यनवसर्पिणीसिद्धाः संखघ यगुणाः । प्रत्युत्पन्ननयापेक्षया एकसमये सिध्यन्तीति नास्त्यल्पबहुत्वम् ।। . गति प्रति प्रत्युत्पन्नभावप्रज्ञापननयस्य सिद्धिगतौ सिध्यन्तीति नास्त्यल्पबहुत्वम् । भूतविषयनयापेक्षया चानन्तरगतो मनुष्यगतौ च सिध्यन्तीति नास्त्यल्पबहुत्वम् । एकान्तरगतो त्वल्पबहुत्वमस्ति। सर्वतः स्तोकास्तिर्यग्योन्यनन्तरगतिसिद्धाः । ततो मनुष्ययोन्यनन्तरगतिसिद्धाः संखय यगुणाः । ततोऽपि संखेययगुणा नरकयोन्यनन्तरगतिसिद्धाः । ततः संखय यगुणा देवयोन्यनन्तरगतिसिद्धा इति । . वेदनायोगे-प्रत्युत्पन्ननयाश्रयणे अवेदाः सिध्यन्तीति नास्त्यल्पबहुत्वम् । भूतविषयनयाश्रयणे तु सर्वतः स्तोका नपुसकवेदसिद्धाः। ततः स्त्रीवेदसिद्धाः संखये यगुणाः। ततोऽपि पुवेदसिद्धाः संखय यगुणाः । तीर्थानुयोगे-तीर्थकरसिद्धा अल्पाः । ततः इतरे सिद्धाः संखय यगुणाः । - कालविभाग तीन प्रकार का है-उत्सर्पिणी, अवसर्पिणी और अनुत्सर्पिण्यवसर्पिणी । सबसे थोड़े उत्सर्पिणी सिद्ध हैं। उनसे विशेष अधिक अवसर्पिणी सिद्ध हैं। उनसे भी संख्यात गुणे अनुत्सपिण्यवसर्पिणी सिद्ध हैं। प्रत्युत्पन्न नयकी अपेक्षा एक समय में सिद्ध होते हैं अतः अल्पबहुत्व नहीं है। ____ गति की अपेक्षा अल्पबहुत्व कहते हैं-प्रत्युत्पन्न नयकी अपेक्षा सिद्धि गति में सिद्ध होते हैं इसलिये अल्पबहुत्व नहीं है । भूतपूर्व नयकी अपेक्षा अनन्तर गति में और मनुष्यगति में सिद्ध होते हैं अतः अल्पबहुत्व नहीं है । एकान्तर गति सिद्धों की अपेक्षा अल्पबहत्व है-सबसे थोड़े तिर्यग्योनि अनन्तर गति सिद्ध हैं। उनसे संख्यात गुणे मनुष्य योनि अनन्तर गति सिद्ध हैं। उनसे भी संख्यात गुणे नरक योनि अनन्तर गति सिद्ध हैं । उनसे भी संख्यात गुणे देवयोनि अनन्तर गति सिद्ध हैं । ____वेदकी अपेक्षा अल्पबहुत्व बतलाते हैं-प्रत्युत्पन्न नयकी अपेक्षा अवेद से सिद्ध होते हैं अतः अल्पबहुत्व नहीं है। अतीत नयकी अपेक्षा तो सबसे थोड़े नपुंसक वेद सिद्ध हैं। उनसे संख्यात गुणे स्त्री वेद सिद्ध हैं, और उनसे भी संख्यात गुणे पुरुष वेद सिद्ध हैं। - तीर्थ की अपेक्षा अल्पबहुत्व-तीर्थंकर सिद्ध अल्प हैं और इतर सिद्ध उनसे संख्यात गुणे हैं।
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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