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________________ ५५२ ] सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्ती गच्छन्ति । ततो वकुशो व्युच्छिद्यते। ततोप्यसंखघ यानि स्थानानि गत्वा प्रतिसेवनाकुशीलो व्युच्छिद्यते । ततोप्यसंखय यानि स्थानानि गत्वा कषायकुशीलो व्युच्छिद्यते । तत ऊर्ध्वमकषायस्थानानि निर्ग्रन्थः प्रतिपद्यते । सोप्यसंखय यानि स्थानानि गत्वा व्युच्छिद्यते । अत ऊर्ध्वमेकं स्थानं गत्वा स्नातको निर्वाणं प्राप्नोतीत्येषां संयमलब्धिरनन्तगुणा भवति ।। शशधरकरनिकरसतारनिस्तलतरलतलमुक्ताफलहारस्फारतारानिकुरुम्बबिम्बनिर्मलतरपरमोदार शरीरशुद्धध्यानानलोज्ज्वलज्वालाज्वलितघनघातीन्धनसङ्घातसकलविमलकेवलालोकितसकललोकालोकस्वभावश्रीमत्परमेश्वरजिनपतिमत विततमतिचिदचित्स्वभावभावाभिधानसाधितस्वभावपरमाराध्यतममहासदान्तः श्रीजिनचन्द्रभट्टारकस्तच्छिष्यपण्डितश्रीभास्करनन्दिविरचितमहाशास्त्रतत्त्वार्यवृत्ती सुखबोधायां नवमोऽध्यायस्समाप्त । सेवना कुशील और बकुश एक साथ इष्ट स्थानों में चले जाते हैं। वहां बकुश तो रुक जाता है और आगे असंख्यात स्थानों तक जाकर प्रतिसेवना कुशील रुक जाता है-छूट जाता है या बिछुड़ जाता है। उनसे भी आगे असंख्यात स्थान तक जाकर कषाय कुशील व्युच्छिन्न होता है । उनसे आगे तो अकषाय स्थान हैं उनको निर्ग्रन्थ प्राप्त करते हैं । निर्ग्रन्थ भी असंख्यात स्थान जाकर व्युच्छिन्न होता है। उसके आगे एक स्थान जाकर स्नातक निर्वाण को प्राप्त करते हैं, इनकी संयमलब्धि अनन्तगुणी होती है। ___जो चन्द्रमा को किरण समूह के समान विस्तीर्ण, तुलना रहित मोतियों के विशाल हारों के समान एवं तारा समूह के समान शुक्ल निर्मल उदार ऐसे परमौदारिक शरीर के धारक हैं, शुक्ल ध्यान रूपी अग्नि की उज्ज्वल ज्वाला द्वारा जला दिया है घाती कर्म रूपी ईन्धन समूह को जिन्होंने ऐसे तथा सकल विमल केवलज्ञान द्वारा संपूर्ण लोकालोक के स्वभाव को जानने वाले श्रीमान परमेश्वर जिनपति के मत को जानने में विस्तीर्ण बुद्धि वाले, चेतन अचेतन द्रव्यों को सिद्ध करने वाले परम आराध्य भूत महासिद्धान्त ग्रन्थों के जो ज्ञाता हैं ऐसे श्री जिनचन्द्र भट्टारक हैं उनके शिष्य पंडित श्री भास्करनंदी विरचित सुख बोधा नामवाली महा शास्त्र तत्त्वार्थ सूत्र की टीका में नवां अध्याय पूर्ण हुआ।
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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