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________________ सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्ती चित्तस्य न कुतश्चिद्विशुद्धिरिति जैमिनीयाः। सति धर्मिणि धर्माश्चिन्त्यन्ते ततः परलोकिनोऽभावात्परलोकाभावे कस्यासौ मोक्ष इति समवाप्तसमस्तनास्तिकाधिपत्या बार्हस्पत्याः । परमब्रह्मदर्शनवशादशेषभेदसंवेदनाऽविद्याविनाशान्मोक्ष इति वेदान्तवादिनः ।। नैवान्तस्तत्त्वमस्तीह न बहिस्तत्त्वमञ्जसा। विचारगोचरातीतेः शून्यता श्रेयसी ततः ।। . इति पश्यतोहरा: प्रकाशितशून्यतैकान्ततिमिराः शाक्यविशेषाः । तथा-ज्ञानसुखदुःखेच्छा-. द्वेषप्रयत्नधर्माधर्मसंस्काराणां नवात्मगुणानामत्यन्तोच्छित्तिर्मुक्तिरिति काणादाः । तदुक्तम् प्रकृति और पुरुष का विवेक ज्ञान होने से मोक्ष प्राप्त होता है ऐसा सांख्य कहते हैं। नैरात्म्य आदि रूप कही गयी भावना से मोक्ष होता है ऐसा दशबल शिष्य कहते हैं। अंगार-कोयला या अञ्जन के समान स्वभाव से ही आगत जो कलुषता है उस कलुषता से युक्त चित्त के-आत्मा के किसी भी कारण से शुद्धि नहीं हो सकती अर्थात् कर्म कलिमा का अभाव नहीं होता अतः मुक्ति नहीं होती ऐसा जैमिनी कहते हैं । धर्मी-आत्मा होवे तो धर्म का विचार कर सकते हैं किन्तु परलोक में जाने वाले आत्मा का ही अभाव है अतः परलोक भी नहीं है ऐसी स्थिति में मोक्ष किसके होगा? किसी के भी नहीं, इस प्रकार संपूर्ण नास्तिक वादियों के अधिपति बार्हस्पत्य-चार्वाक कहते हैं। परमब्रह्म का दर्शन होने से सकल भेदों का संवेदन करानेवाली अविद्या का नाश होता है और अविद्या के नाश से मोक्ष होता है ऐसा वेदान्त वादी कहते हैं। न अन्तस्तत्त्व रूप आत्म तत्त्व है और न बाह्य तत्त्व रूप अजीव तत्त्व क्योंकि विचार करने पर ये प्रतीत नहीं होते इसलिये शून्यता मानना श्रेयस्कर है ॥ १ ॥ इस प्रकार पश्वतोहर-देखते हुए भी नहीं मानने वाले शून्य एकान्त रूप अन्धकार को मानने वाले बौद्ध हैं [इनके यहां मुक्ति की कल्पना ही नहीं है] ज्ञान, सुख, दुःख, इच्छा, द्वेष, प्रयत्न, धर्म, अधर्म और संस्कार इन आत्मिक नौ गुणों का अत्यन्त नाश होना मोक्ष है ऐसा काणाद [वैशेषिक] कहते हैं। इनके कण भोजी ऋषि ने कहा है कि शरीर से बाहर जो आत्मा का स्वरूप प्रतीत होता है वही मुक्ति का स्वरूप है।
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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