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________________ ४२८ ] सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्ती - अभिमतदेशगमनं प्रत्युत्सुकस्य तत्प्रतिबन्धहेतुः कीलकादिषु रज्वादिभिर्व्यतिषङ्गो बन्धनं बन्ध इत्युच्यते । दण्डकशावेत्रादिभिः प्राणिनामभिहननं वध इति गृह्यते, न तु प्राणव्यपरोपणं-ततः प्रागेवास्य विनिवृत्तत्वात् । कर्णनासिकादीनामवयवानामपनयनं छेदनं छेद इतिकथ्यते । न्याय्याद्भारादतिरिक्तस्य भारस्य वाहनमतिलोभाद्गवादीनामति भारारोपणमिति गम्यते । अन्नं च पानं चान्नपाने तयोनिरोधः गवादीनां कुतश्चित्कारणात्क्षुत्पिपासाबाधोत्पादनमित्यर्थः । एते पञ्चाऽहिंसाणुव्रतस्यातिचारा भवन्तीत्येवमवसेयम् । सत्याणुव्रतस्यातिचारानाह मिथ्योपदेशरहोभ्याख्यानकूटलेखक्रियान्यासापहारसाकारमन्त्रभेदाः ॥२६॥ अभ्युदयनिःश्रेयसार्थेषु क्रियाविशेषेष्वन्यस्यान्यथा प्रवर्तनमतिसन्धापनं वा मिथ्योपदेश इत्युच्यते । रहस्येकान्ते स्त्रीपुंसाभ्यामनुष्ठितस्य क्रियाविशेषस्य यत्प्रकाशनं तद्रहोभ्याख्यानमिति वेदितव्यम् । कूटो व्यलीक इत्यर्थः। लेखनं लिख्यत इति वा लेखः, कूटश्चासौ लेखश्च कूटलेखस्तस्य अपने इष्ट स्थान पर जाने में जो उत्सुक है उसको रोकने के लिये कीला खूटी आदि में रस्सी आदि से बांध देना बन्ध कहलाता है। दण्ड, कोड़ा, बेत आदि से प्राणियों को पीटना वध है, यहां पर वध शब्द से प्राणघात अर्थ नहीं लेना, क्योंकि ऐसे प्राणी घातका तो उसने पहले ही त्याग कर दिया है । कान, नाक इत्यादि अवयवों को काटना छेद है । न्याय भार से अधिक भार लादना अर्थात् बैल, भैंसा, घोड़ा आदि पशुओं पर अत्यंत लोभवश शक्ति से ज्यादा भार डाल देना अधिक बोझा लादना अतिभारारोपण कहलाता है । अन्न और पानीका निरोध करना अर्थात् गाय, बैल, घोड़ा आदि को भूख प्यास की बाधा किसी कारणवश देना अन्नपान निरोध नामका अतिचार कहा जाता है । ये पांच अहिंसाणुव्रत के अतिचार हैं ऐसा जानना चाहिए। सत्याणुव्रत के अतिचार बतलाते हैं सूत्रार्थ-मिथ्या उपदेश, रहोभ्याख्यान, कूट लेखक्रिया, न्यासापहार और साकार मन्त्र भेद ये पांच सत्याणुव्रत के अतिचार हैं । अभ्युदय और निःश्रेयस सम्बन्धी क्रिया विशेषों में दूसरों को विपरीत प्रवर्तन कराने वाले वचन या ठगने के वचन बोलना मिथ्योपदेश है। गुप्त एकांत स्थान पर स्त्री पुरुष द्वारा की गयो क्रिया विशेष को जो प्रगट किया जाता है उसको रहोभ्याख्यान कहते हैं । असत्य को कूट कहते हैं, लेखनको लेख कहते हैं कूट और लेख पदका
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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