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________________ ३९४ ] सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्ती ___ स्त्रियो योषितः । रागोऽत्राऽप्रशस्तप्रीतिरूपः । तमन्तरेणाऽपि धर्मकथायाः स्त्रीकथाश्रवणस्य सद्भावाद्रागविशेषणं प्रयुज्यमानं सार्थकम् । मनोहराङ्गनिरीक्षणादिषु तस्याऽवश्यंभावित्वात्सामर्थ्यलब्धः । कथनं कथा । कथायाः श्रवणं कथाश्रवणम् । रागेण कथाश्रवणं रागकथाश्रवणम् । मनोहराणि मनःप्रीतिकराण्यङ्गानि शरीरावयवाः । मनोहराणि च तान्यङ्गानि च मनोहरांगानि । तेषां निरीक्षणं मनोहरांगनिरीक्षणम् । पूर्वस्मिन्काले गृहस्थावस्थायां रतं क्रीडितं पूर्वरतम् । रागकथाश्रवणादीनां त्रयाणामितरेतरयोगे द्वन्द्वः । ततः स्त्रीणां रागकथाश्रवणादीनि स्त्रीरागकथाश्रवणमनोहरांगनिरीक्षणपूर्वरतानुस्मरणानि । वृष्याः शरीरबलपुष्टीन्द्रियविकारकारिणः । इष्टा वाञ्छिता हृदयाह्लादविधायिन इत्यर्थः । रसाः खंडगुडशर्करादधिदुग्धघृततैलादयः । इष्टाश्च ते रसाश्चेष्टरसाः । वृष्याश्च ते इष्टरसाश्च वृष्येष्टरसाः । स्वमात्मीयमित्यर्थः । स्वं च तच्छरीरं च स्वशरीरम् । तस्य संस्कारः स्नानोद्वर्तनादिः स्वशरीरसंस्कारः। पूनः सर्वेषां कृतद्वन्द्वानां त्यागशब्देन प्रत्येकसम्बन्धे तेन सह तत्पुरुषः कर्तव्यः । एतदुक्त भवति-स्त्रीरागकथाश्रवणं च स्त्रीमनोहरांगनिरीक्षणं च स्त्रीपूर्वरतानुस्मरणं च वष्येष्टरसाश्च स्वशरीरसंस्कारश्च तेषां त्यागा: पञ्च भावना: पूर्ववद्ब्रह्मचर्यव्रतस्य भवन्तीति । पञ्चमव्रतस्य भावनासंसूचनार्थमाह अप्रशस्त रागको यहां राग कहा है । धर्म कथा-पुराण आदि में स्त्री कथा सुनना होता है किन्तु वहां पर स्त्री सम्बन्धी राग नहीं रहता, इसी अर्थको स्पष्ट करने हेतु 'राग' विशेषण लिया है। मनोहर अंगोंका देखना इत्यादि में भी राग विशेषण जुड़ता है सामर्थ्य से ही यह ज्ञात होता है। रागपूर्वक स्त्री की कथा सुनना स्त्री राग कथा श्रवण कहलाता है । मनोहरांग निरीक्षण पदमें कर्मधारय समास कर फिर तत्पुरुष समास करना। पूर्व में गृहस्थ अवस्था में जो रति क्रीडा की थी उसको पूर्वरत कहते हैं। राग कथा श्रवण आदि तीनों का पहले इतरेतर द्वन्द्व करना पुन: स्त्री शब्दको तत्पुरुष समास से जोड़ना । शरीर में बलदायक और इन्द्रियों को विकृत करने वाला रस 'वृष्य' कहलाता है। हृदय में आह्लाद करने वाला रस 'इष्ट' कहा जाता है। खाण्ड, गुड़, शक्कर, दही, दूध, घी और तेल इत्यादि रस कहलाते हैं। 'वृष्येष्टरस' पदोंमें कर्मधारय समास है । अपने शरीर को स्वशरीर कहते हैं । उसका स्नान उबटन आदि करना संस्कार कहलाता है । द्वन्द्व समासान्त इन सभी पदों के साथ त्याग शब्द जुड़ता है, इसके लिए तत्पुरुष समास करना । अर्थ यह हुआ कि स्त्री राग कथा श्रवण स्त्री के मनोहर अंगों का निरीक्षण, स्त्री के पूर्वरत का स्मरण, वृष्येष्ट रस और स्वशरोर संस्कार इन सबका त्याग करने रूप पांच भावना पूर्ववत् ब्रह्मचर्य व्रतकी हैं । पांचवें व्रतकी भावनाओं की सूचना करते हैं
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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