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आयुकर्म के भेद नाम कर्म के भेद नाम के कर्म प्रकृति के पृथक् पृथक् लक्षण गोत्र कर्म के भेद अन्तराय कर्म के भेद ज्ञानावरण आदि शुरू के तीन एवं अन्तराय कर्म की उत्कृष्ट स्थिति मोहनीय की उत्कृष्ट स्थिति नाम और गोत्र कर्मको उत्कृष्ट स्थिति आयुकर्म की उत्कृष्ट स्थिति वेदनीय कर्म की जघन्य स्थिति नाम और गोत्र कर्म की जघन्य स्थिति .... शेष कर्म प्रकृतियों की जघन्य स्थिति .... अनुभव [ अनुभाग ] का लक्षण अनुभव की प्रतीति कर्म का निर्जीर्ण होना कर्मों के घाती अघाती आदि भेद प्रदेश बन्ध पुण्य प्रकृतियां पाप प्रकृतियां
नौवां अध्याय संवर का लक्षण किस गुणस्थान में कौन प्रकृतियां रुकती हैं संवर का हेतु निर्जरा हेतु गुप्ति का स्वरूप पांच समितियां दश धर्म बारह भावना परीषह क्यों सहे ?
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