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________________ ३६८ ] सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्ती केवलिश्रुतसंघधर्मदेवाऽवर्णवादो दर्शनमोहस्य ॥१३॥ चक्षुरादिकरणक्रमकुड्यादिव्यवधानातीतनिरावरणज्ञानोपेता अर्हन्तः केवलिन इति व्यपदिश्यन्ते । तदुपदिष्टं बुद्धयतिशद्धियुक्तगणधरावधारितं श्रुतं व्याख्यातम् । सम्यग्दर्शनादिरत्नत्रयभावनापराणां चतुर्विधानां श्रमणानां गणः संघ इति प्रोच्यते। एकस्याऽसंघत्वं प्राप्नोतीति चेतन्न । कि कारणम् ? अनेकवतगुणसंहननादेकस्याऽपि संघत्वसिद्धेः । तथा चोक्तम् संघो गुणसंघादो कम्माणविमोइदो हवदि संघो। दसणणाणचरित्ते संघादिन्तो हवदि संघो । इति ।। संक्लेश के अंग होने से, यहां पर संक्लेश का अर्थ आत रौद्र स्वरूप परिणाम है। और विशुद्धि का अर्थ संक्लेश का अभाव है। जो मन वचन और कायकी प्रवृत्ति विशुद्धि का कारण है, या कार्य है या विशुद्धि स्वभाव रूप है वह सर्व ही सातावेदनीय का आस्रव स्वरूप है । और जो संक्लेश का कारण है, या संक्लेश का कार्य है या संक्लेश स्वरूप है वह सर्व ही असाता वेदनीय कर्मका आसव है । ऐसा समझना चाहिए । मोहकर्म के आसव को कहते हैंसूत्रार्य-केवली, श्रुत, संघ, धर्म और देवका अवर्णवाद दर्शनमोहका आसव है। जिनका ज्ञान चक्षु आदि इन्द्रियों से नहीं होता, जिसमें क्रमत्व नहीं है, भित्ति आदि के व्यवधान से भी जो रहित है अर्थात् जिस ज्ञान में रुकावट सम्भव नहीं है ऐसे निरावरण केवलज्ञानसे युक्त अहंत देव केवली कहलाते हैं । उन केवली के द्वारा कहा हआ तथा बुद्धि आदि के अतिशय ऋद्धित्व के धारक गणधर द्वारा जो निश्चित किया गया है उसको श्रुत कहते हैं। श्रुतका वर्णन पहले किया है। सम्यग्दर्शन आदि रत्नत्रय की भावना में तत्पर चतुर्विध साधुओं का गण संघ कहलाता है । शंका-चार प्रकार के साधुओं के समुदाय को संघ कहते हैं तो एक साधुको असंघपना आ जायगा ? समाधान-ऐसा नहीं है । एक साधु में भी अनेक व्रत और गुणोंका समूह रहता ही है अतः एक के भी संघपना सिद्ध होता है । कहा भी है गुणों के संघात को संघ कहते हैं संघ कर्मोंका विमोचक है । दर्शनज्ञान और चारित्र का समुदाय होने से एक साधु को भी संघ कहते हैं ॥१॥ जिन प्रवचन में कहा
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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