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पचमोऽध्यायः
[ ३२७ षट्सप्ताष्टसङ्ख्य यासङ्ख्ययानन्तगुणस्निग्धेन बन्धो न विद्यते । एवं त्रिगुणस्निग्धस्य पञ्चगुणस्निग्धेन बन्धोऽस्ति । शेषः पूर्वोत्तरैर्न भवति । चतुर्गुणस्निग्धस्य षड्गुणस्निग्धेनास्ति सम्बन्धः । शेषः पूर्वोत्तरै
स्ति । एवं शेषेष्वपि योज्यः । तथा द्विगुणरूक्षस्यैकद्वित्रिगुणरूक्षेर्नास्ति बन्धः । चतुर्गुणरूक्षण त्वस्ति बन्धः। तस्यैव द्विगुणरूक्षस्य पञ्चगुणरूक्षादिभिरुत्तरैर्नास्ति सम्बन्धः । एवं त्रिगुणरूक्षादीनामपि द्विगुणाधिकैर्बन्धो योज्यः । एवं भिन्नजातीयेष्वपि-द्विगुणस्निग्धस्यैकद्वित्रिगुणरूक्षैर्नास्ति बन्धः । चतुर्गुणरूक्षेण त्वस्ति । उत्तरः पञ्चगुणरूक्षादिभिर्नास्ति । एवं त्रिगुणस्निग्धादीनां पञ्चगुणरूक्षादिभिरस्ति । शेषैः पूर्वोत्तरैर्नास्ति बन्ध इति योज्यः । तथा चोक्तम्
णिद्धस्स गिद्धेण दुराहिएण लुक्खस्य लुक्खेण दुराहिएण । गिद्धस्य लक्खेण उवेदि बन्धो जहण्णवज्जो विसमे समे वा ।। इति ।।
स्निग्ध का पांच गण स्निग्ध के साथ, या छह, सात, आठ, संख्यात, असंख्यात और अनंत स्निग्ध गणों के साथ बन्ध नहीं होता । इसी प्रकार तीन गुण स्निग्ध का पांच गण स्निग्ध के साथ बन्ध होता है, शेष कम अधिक गण वाले स्निग्ध के साथ बन्ध नहीं होता । चार गण स्निग्ध का छह गण स्निग्ध के साथ बंध होता है। शेष कम अधिक गुणवाले के साथ बंध नहीं होता। इसतरह शेष में लगाना चाहिए। तथा दो रूक्ष का एक, दो, तीन ग ण रूक्ष के साथ बन्ध नहीं होता, चार ग ण रूक्ष के साथ तो उसका बन्ध होता है । उसी द्विगण रूक्षका पांच ग ण रूक्षादि के साथ बंध नहीं होता। इसीतरह तीन ग ण रूक्ष आदि का भी दो गुण अधिक के साथ बंध होता है ऐसा लगाना चाहिए । तथा भिन्नजातीय गणवालों में भी लगाना चाहिये, जैसे कि दो गण स्निग्ध का एक, दो, तीन ग ण रूक्षों के साथ बन्ध नहीं होता किंतु चार गण रूक्ष के साथ तो बन्ध होता है, आगे के पांच गुण आदि रूक्षों के साथ बन्ध नहीं होता। इसी तरह तीन ग ण स्निग्ध आदि का पांच गण रूक्षादि के साथ तो बन्ध होता है किन्तु शेष कम अधिक ग णवालों के साथ बंध नहीं होता ऐसा लगाना चाहिए। कहा भी है
दो अधिक स्निग्ध का स्निग्ध के साथ बंध होता है तथा दो अधिक रूक्षका रूक्षके साथ बन्ध होता है । एवं स्निग्ध का रूक्षके साथ भी उक्त रीत्या बन्ध सम्भव है किन्तु जघन्य गुणको छोड़कर । तुल्यजातीय और अतुल्यजातीय परमाणुओं का परस्पर में बन्ध होता है केवल जघन्य को छोड़ देना तथा दो गण अधिक होना यह बन्ध का सामान्यतया नियम है ।।१।।