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________________ ३२० ] सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्तो युक्तशब्दस्य लोके प्रयोगदर्शनान्मत्वर्थीयवदेव । यथात्मवानात्मा । सारवान् स्तम्भ इति मत्वर्थीयस्तथा सारयुक्तस्तम्भ इति युक्तशब्दोऽपि दृश्यते । एवमुत्पादादियुक्त जीवादिद्रव्यं सदित्येतदपि घटामटत्येव । अथवा नायं युजिर्योग इत्यस्य युजेर्युक्तमिति शब्दः साध्यते किं तर्हि युजसमाधावित्यस्य साध्यते । युक्त समाहितमित्यर्थः । समाधानं च तात्पर्य तादात्म्यमिति यावत् । तत्र चोत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तमुत्पादव्ययध्रौव्यात्मकमित्ययमर्थः सिद्धो भवति । सच्छब्दस्य प्रशंसाद्यनेकार्थसम्भवेऽपि विवक्षातोत्रास्तित्ववचनस्य ग्रहणम् । तेन सद्रव्यमस्ति विद्यमानं द्रव्यमित्यर्थे भवति । तत्र च पर्यायपर्यायिणोः कथञ्चिद्भेदाभ्युपगमान्न सर्वाभावः प्रसज्यते । तथा च सति पर्यायार्थनयादेशादुत्पादव्यययुक्त द्रव्यम् । द्रव्यार्थनयादेशाध्रौव्ययुक्तमिति विभागकथनस्याविरोधादेकस्मिन्नपि समये द्रव्यस्य त्रयात्मकत्वं न विरुध्यते । सांप्रतं पूर्वोद्दिष्टस्य नित्यत्वस्य लक्षणं निर्दिशन्नाह समाधान-ऐसा नहीं होगा। देखिये ! अभेद में भी कथंचित् भेद नयकी विवक्षा में युक्त शब्द का प्रयोग लोक में देखा जाता है, जैसे मत्वर्थीय का प्रयोग अभेद में होता है । जैसेकि आत्मावान् आत्मा है, सारवान् स्तम्भ है इत्यादि में अभेद में भी मत्वर्थीय आया है वैसे सारयुक्त स्तम्भ है इसमें भी युक्तशब्द प्रयुक्त होता है। ठीक इसी तरह जीवादि द्रव्य उत्पाद आदि से युक्त होता है वही सत् है यह कथन भी घटित होता है। अथवा युक्त शब्द युजिर्योगे इस धातु से सिद्ध नहीं करते किन्तु 'युजः समाधौ' इस धातु से सिद्ध करते हैं, जिसका अर्थ होता है-युक्त-समाहित, अर्थात् समाधान यहां समाधान से तात्पर्य है तादात्म्य से । इसमें 'उत्पाद व्यय ध्रौप्य युक्त' का अर्थ हआ उत्पाद व्यय और ध्रौव्यात्मक है। सत् शब्द प्रशंसा आदि अनेक अर्थ में आता है किन्तु यहां विवक्षा से अस्तित्व अर्थ लिया है, 'द्रव्य सत् है' ऐसा कहने पर द्रव्य विद्यमान है यह अर्थ होता है। पर्याय और पर्यायी में कथंचित् भेद स्वीकार किया है। अतः सर्व अभाव का प्रसंग नहीं आता। इसमें पर्यायार्थिक नयकी अपेक्षा से द्रव्य उत्पाद व्यय ध्रौव्य से युक्त है, और द्रव्याथिक नयकी अपेक्षा से ध्रौव्य युक्त है, इस तरह नयों के विभाग के अनुसार कथन करने में विरोध नहीं आता, तथा एक ही समय में द्रव्य का त्रयपना विरुद्ध भी नहीं पड़ता। पूर्व में कहे हुए नित्यत्व का लक्षण बताते हैं
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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