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________________ पंचमोऽध्यायः [ ३०१ त्वात् । स्वसत्तैव पदार्थानां वर्तनाहेतुः कालाणुवदिति चेत्कुतः कालानुसिद्धिर्यतोयं दृष्टान्तः स्यात् ? पदार्थानामेकसमय वृत्तित्वादेव तत्सिद्धिरिति चेत् — सिद्धा तर्हि कालानुगृहीता पदार्थानां वृत्तिः कथं निराक्रियेत ? अथ कालागूनां वृत्तेरपरापरनिमित्तापेक्षायामनवस्था स्वादिति चेन्न - स्वत: कालस्य कालान्तरानपेक्षित्वात् । पदार्थान्तरवृत्तिर्हि कालविशिष्टतया प्रतीयमाना तत्सम्बन्धापेक्षा भव युक्त वक्त ुम् । न तु स्वयं कालः कालान्तरापेक्षो भवति, तस्य कालान्तरसम्बन्धत्वप्रतीत्यभावात् । कुतस्तर्हि प्रतिसमयं वृत्तिरर्थानां सिद्धेति चेन्मुहूर्तादिवृत्त्यन्यथानुपपत्तेरिति ब्रूमः । द्रव्यस्य स्वजात्य परित्यागेन प्रयोगवित्रसालक्षणो विकारः परिणामः । तत्र प्रयोगे पुरुषकारस्तदनपेक्षा विक्रिया समाधान - कालाणु की सिद्धि किससे हुई है, जिससे कि यह दृष्टांत बने ? शंका- पदार्थों की एक समय की वृत्ति से ही कालाणु की सिद्धि होती है ? समाधान - तो फिर कालाणु से गृहीत पदार्थों की वृत्ति का निराकरण कैसे किया जा सकता है, नहीं किया जा सकता । शंका - पदार्थों की वृत्ति को कालाणु द्वारा होना मानेंगे तो कालाणु की वृत्ति का भी दूसरा कोई निमित्त मानना होगा इसतरह अनवस्था आती है ? समाधान- नहीं आती, जो स्वतः कालस्वरूप है उसको दूसरे काल की अपेक्षा नहीं होती । काल से भिन्न जो पदार्थांतर हैं उनकी वृत्ति काल से विशिष्ट होकर प्रतीत होती है अतः काल के निमित्त की अपेक्षा से पदार्थों की वृत्ति होती है ऐसा कहना बनता है किन्तु स्वयं काल ही कालान्तर की अपेक्षा से होता है ऐसा कहना असत् है, क्योंकि उसके लिये कालान्तर के संबंध की अपेक्षा हो ऐसा प्रतीत नहीं होता । प्रश्न - तो बताइये कि पदार्थों की प्रति समय में होने वाली वृत्ति किस कारण से सिद्ध होती है ? उत्तर - मुहूर्त्त आदि वृत्ति की अन्यथानुपपत्ति से उसकी सिद्धि होती है ऐसा हम कहते हैं । द्रव्य का अपनी जाति का त्याग नहीं वरते हुए प्रयोग और स्वभाव से जो विकार होता है वह परिणाम है । उनमें जो प्रयोग से होता है वह पुरुषार्थ से होता है और जो स्वभाव से होने वाला परिणाम है वह पुरुषार्थ की अपेक्षा नहीं रखता, इस -
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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