SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 344
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पंचमोऽध्यायः [ २६६ का पुनरसौ वर्तना नाम ? प्रतिद्रव्यपर्यायमन्तींतकसमया स्वसत्तानुभूतिर्वर्तना। अस्यार्थः-द्रव्यस्य पर्यायो द्रव्यपर्यायः द्रव्यपर्यायं प्रति प्रतिद्रव्यपर्यायम् । अन्तः प्रापित एकः समयो यया साऽन्तींतक समया स्वसत्तानुभूतिरुच्यते । उत्पादव्ययध्रौव्यक्यवृत्तिरेव सत्ता । न ततोऽन्या काचिदस्ति । स्वा स्वकीया प्रतिनियता असाधारणीत्यर्थः । स्वा चासौ सत्ता च स्वसत्ता। सा बुद्धयभिधानानुप्रवृत्ति लिङ्ग नानुमीयमाना सादृस्योपचारादेकापि सती जीवाजीवतद्भदप्रभेदैः सम्बन्धमापद्यमाना विशिष्ट शक्तिभिरेव सम्बध्यते । तस्याः स्वसत्ताया अनुभूतिरनुभवनं स्वसत्तानुभूतिवर्तनेत्युच्यते । एकस्मिन्न विभागिनि समये धर्मादीनि द्रव्याणि षडपि स्वपर्यायैरादिमदनादिमद्भिरुत्पादव्यय ध्रौव्यविकल्पैर्वर्तन्त इति कृत्वा तद्विषया सती वर्तना प्रतिद्रव्यपर्यायमेकसमयवृत्तिहेतुत्वमेवेति कथ्यते । सा कालस्य लक्षणं भवति । लक्ष्यते ज्ञायते कालोऽनयेति लक्षणमिति व्युत्पत्तेः । तथाहि-सकलपदार्थगता वर्तना कार ___ उत्तर-प्रत्येक द्रव्य की एक समय वाली जो पर्याय है उसमें अपनी सत्ता की जो अनुभूति है वह वर्तना कहलाती है । इसीको और भी कहते हैं-द्रव्य की पर्याय को द्रव्य पर्याय कहते हैं, द्रव्य पर्याय के प्रति जो हो वह प्रति द्रव्यपर्याय है, अन्तर में प्राप्त कराया है-एक समय जिससे वह अन्तर्नीत एक समय वाली स्वसत्ता की अनुभूति कही जाती है । उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य की ऐक्य वृत्ति ही सत्ता है इससे अन्य कुछ सत्ता नहीं है । स्वकीय सत्ता अर्थात् प्रतिनियत असाधारण सत्ता। स्वा चासौ सत्ता च स्वसत्ता ऐसा इसका समास है । वह सत्ता बुद्धि, अभिधान और अनुप्रवृत्तिरूप लिंग से अनुमीयमान अर्थात् सभी पदार्थों में यह सत् है, यह सत् है ऐसी बुद्धि होती है, सब पदार्थ सद् रूप होने से रूप लिंग [ हेतु ] द्वारा अनुमीयमान यह सत्ता सादृश्यता के उपचार से एक है [ सब पदार्थों में सत् समान होने से महा सत्ता रूप सत्ता एक है। ] तो भी जीव अजीव तथा उनके भेद प्रभेद द्वारा जो संबंध को प्राप्त होती है वह विशिष्ट शक्तियों द्वारा ही प्राप्त होती है अतः वह सत्ता अनेक है [ अवांतर सत्ता ] ऐसी उसे स्वसत्ता की अनुभूति होना स्वसत्तानुभूति है यह वर्तना है। एक अविभागी समय में धर्मादि छह द्रव्य भी आदिमान और अनादिमान उत्पादव्यय ध्रौव्य विकल्प रूप स्व स्व पर्यायों द्वारा वर्तित होते हैं इस दृष्टि से तद् विषयक वर्त्तना प्रत्येक द्रव्यपर्याय एक समयवर्ती होने से एक समय हेतुक कहलाती है। अभिप्राय है कि धर्मादि द्रव्यों की अर्थ पर्याय एक समय वाली है उस एक एक समयवाली पर्याय में अपनी सत्ता की अनुभूति होती है, उसमें निमित्त वर्तना है अतः इसे एक समय रूप कहते हैं । वह काल का लक्षण है । "लक्ष्यते ज्ञायते कालः अनया" जिसके द्वारा काल लक्षित होता है वह लक्षण है, इसतरह व्युत्पत्ति है । इसीको कहते हैं
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy