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________________ २२२ ] सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्तौ सहस्राराख्याश्चत्वारोप्युत्तरदक्षिणदिग्वर्तिनः कल्पसंज्ञा एव नेन्द्राभिधाना ब्रह्मादिदक्षिणकल्पेन्द्रचतुष्टयाधोनत्वात । तत्र द्वयोर्द्वयोरेकैकइन्द्र इति वचनात् । ब्रह्मा नाम इन्द्रस्तस्य लोको ब्रह्मलोक इति कल्पस्य नाम रूढम् । तथा तदुत्तरदिग्वर्ती ब्रह्मोत्तरोऽपि कल्प एव ज्ञेयो नेन्द्रः । अथवा ब्रह्मण इन्द्रस्य निवासः कल्पो ब्राह्मः । तत्सहचरित इन्द्रोपि ब्राह्मसंज्ञकः । लान्तवस्येन्द्रस्य निवासः कल्पो लान्तवः । तत्सम्बन्धादिन्द्रोपि लान्तवाख्यः । कापिष्ठः कल्प एवास्ति न पुनरिन्द्रः । शुक्रस्येन्द्रस्य निवासः शौक्र: कल्पः । तत्सहचरित इन्द्रोऽपि शौक्रः । अथवा कल्पस्येन्द्रस्य च शुक्रव्यपदेशः । महाशुक्रः कल्प एवास्ति न विन्द्रः । शतारस्येन्द्रस्य निवासः कल्पः शतारः। तत्सहचरित इन्द्रोऽपि शतारः । अथवा कल्पस्येन्द्रस्य च शतार इति नाम रूढम् । तथा सहस्रारः कल्प एवास्ति न विन्द्रः । आनतस्येन्द्रस्य निवासः कल्प आनतः । तत्सहचरित इन्द्रोप्यानतः । प्राणतस्येन्द्रस्य निवासः कल्पः प्राणतः । तत्सहचरित इन्द्रोऽपि प्राणतः । पारणस्येन्द्रस्य निवासः कल्प पारणः । तत्सहचरित इन्द्रोप्यारणः । अथवा स्वभावात्कल्पस्य तत्साहचर्यादिन्द्रस्याप्यारणसंज्ञा । अच्युतस्येन्द्रस्य निवास: कल्प प्राच्युतः । तत्सह सहस्रार नाम वाले चार उत्तर के कल्प हैं ये दक्षिण दिशानुवर्ती हैं, ये संज्ञायें कल्पों की ही हैं इन्द्रों की नहीं, क्योंकि ये कल्प ब्रह्म आदि दक्षिण दिशा संबंधी चार इन्द्रों के अधीनस्थ हैं । उनमें दो दो में एक एक इन्द्र होता है ऐसा आर्ष वचन है। ब्रह्म नामका इन्द्र है उसका लोक ब्रह्म लोक है इसप्रकार कल्प का रूढ नाम है । तथा उसके उत्तर दिशा वर्ती ब्रह्मोत्तर भी कल्प ही है उसमें इन्द्र नहीं है । अथवा ब्रह्म इन्द्र का निवास कल्प ब्राह्म है, और उसके सहचर से इन्द्र भी ब्राह्म नाम वाला होता है। लान्तव इन्द्र का निवास कल्प लान्तव है और उसके संबंध से इन्द्र भी लान्तव नामका है। कापिष्ठ नामका कल्प ही है उसमें इन्द्र नहीं है । शुक्र इन्द्र का निवास कल्प शौक है उसके सहचर से इन्द्र भी शौक कहलाता है अथवा कल्प और इन्द्र का नाम शुक्र है । महाशुक्र कल्प ही है उसमें इन्द्र नहीं है । शतार इन्द्र का निवास कल्प शतार है और उसके साहचर्य से इन्द्र भी शतार संज्ञक है । अथवा कल्प और इन्द्र का शतार नाम रूढ में है । तथा सहस्रार कल्प ही है उसमें इन्द्र नहीं है । आनत इन्द्र का निवास कल्प आनत है उसके साहचर्य से इन्द्र भी आनत है । प्राणत इन्द्र का निवास कल्प प्राणत है और उसके साहचर्य से इन्द्र भी प्राणत कहलाता है । आरण इन्द्र का निवास कल्प आरण है और उसके साहचर्य से इन्द्र भी आरण है । अथवा स्वभाव से कल्प की और उसके सहचर से इन्द्र की भी आरण संज्ञा है । अच्युत इन्द्र का निवास कल्प आच्युत है और उसके सहचर से इन्द्र भी आच्युत है । अथवा स्वभाव से अच्युत
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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