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तृतीयोऽध्यायः
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कायिकानां द्वाविंशतिर्वर्षसहस्राणि । वनस्पतिकायिकानां दशवर्षसहस्राणि । अप्कायिकानां सप्तवर्ष सहस्राणि । वायुकायिकानां त्रीणि वर्षसहस्राणि । तेजस्कायिकानां त्रीणि रात्रिदिवानि । विकलेन्द्रियाणां द्वादशवर्षैकान्नपञ्चाशद्रात्रिदिवानि षण्मासाश्च - द्वीन्द्रियाणामुत्कृष्टा स्थितिर्द्वादशवर्षाः । त्रीन्द्रियाणामेकान्नपञ्चाशद्रात्रिदिवानि । चतुरिन्द्रियाणां षण्मासाः । पञ्चेंद्रियाणां पूर्वकोटी नवपूगानि द्विचत्वारिंशद्वासप्ततिवर्षसहस्राणि त्रिपल्योपमा च । पञ्चेन्द्रियास्तैर्यग्योनाः पञ्चविधाः जलचराः परिसर्पा उरगाः पक्षिरणश्चतुः पदाश्चेति । तत्र जलचराणामुत्कृष्टा स्थितिः पूर्वकोटी । परिसर्पाणां गोधानकुलादीनां नवपूर्वाङ्गानि । उरगाणां द्विचत्वारिंशद्वर्षसहस्राणि । पक्षिणां द्वासप्ततिवर्षसहस्राणि । चतुष्पदां त्रिपल्योपमा । सर्वेषां जघन्यस्थितिरन्तर्मुहूर्ता । किमर्थो योगविभागः ? यथासंखयनिवृत्त्यर्थः । एकयोगे हि कृते नृणां त्रिपल्योपमा तिरश्चामन्तर्मुहूर्तेति यथासंखय ं स्यात् । तस्मात्प्रत्येकमुभे स्थिती यथा स्यातामिति यथासंखयनिवृत्त्यर्थो योगविभागः क्रियते । अथैषां काय
कायिकों की बावीस हजार वर्ष, वनस्पतिकायिक जीवों की उत्कृष्ट स्थिति दश हजार वर्ष, जलकायिकों की सात हजार वर्ष, वायुकायिकों की तीन हजार वर्ष और अग्निकायिकों की तीन दिन रात की उत्कृष्ट आयु होती है । विकलेन्द्रियों की उत्कृष्ट आयु बारह वर्ष, उनचास दिन रात और छह मास की है । अर्थात् द्वीन्द्रिय जीवों की उत्कृष्ट आयु बारह वर्ष प्रमाण है, त्रीन्द्रियों की उनचास दिन रात की ओर चतुरि न्द्रियों की छह मास की उत्कृष्ट आयु है । पंचेन्द्रियों में पूर्व कोटी, पूर्वांग, बियालीस हजार, बहत्तर हजार वर्ष और तीन पल्य की आयु है । इसीको आगे स्पष्ट करते हैंपंचेन्द्रिय तिर्यञ्च पांच प्रकार के हैं- जलचर, परिसर्प, उरग, पक्षी और चतुष्पद | उनमें जलचर जीवों की उत्कृष्ट आयु पूर्व कोटी है । गोधा, नकुल आदि परिसर्पों की नव पूर्वांग वर्ष की उत्कृष्ट आयु है । उरग - सर्प - नागों की बियालीस हजार वर्ष की, पक्षियों की बहत्तर हजार वर्ष की, चतुष्पदों की तीन पल्यों की आयु है । इन सभी जीवों की जघन्य आयु अन्तर्मुहूर्त्त की है ।
प्रश्न - मनुष्यों की आयु और तिर्यञ्चों की आयु पृथक पृथक सूत्र द्वारा क्यों
कही ?
उत्तर—यथासंख्य लगाने का प्रसंग हटाने के लिये, मनुष्यों की आयु तीन पल्य और तिर्यञ्च की आयु अन्तर्मुहूर्त है ऐसा अर्थ एक सूत्र करने पर हो जाता, अतः प्रत्येक के दोनों स्थिति सिद्ध हो जाय, यथासंख्य का प्रसंग दूर होने के लिये सूत्र विभाग किया गया है |