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तृतीयोऽध्यायः
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चतुर्दशनदीसहस्रपरिवता गङ्गासिन्ध्वादयो नद्यः ॥२३॥ चतुभिरधिकानि दश चतुर्दश । नदीनां सहस्राणि नदीसहस्राणि । चतुर्दश च तानि नदीसहस्राणि च चतुर्दशनदीसहस्राणि । तैः परिवृताः परिवेष्टिताश्चतुर्दशनदीसहस्रपरिवृताः। गङ्गा च सिन्धुश्च गङ्गासिन्धू । ते आदी यासां नदीनां ता गङ्गासिन्ध्वादयो नद्यो वेदितव्याः । पूर्वगाणां चापरगाणां चोभयानां संग्रहार्थं गङ्गासिन्ध्वादिग्रहणं क्रियते । अन्यथाऽनन्तरत्वादपरगाणामेवात्र ग्रहणं स्यात् । सिन्धुग्रहणमपनीय गङ्गादय इति चोच्यमाने पूर्वगाणामेव ग्रहणं भवेदिति सिन्धुग्रहणं कृतम् । प्रकरणवशात् सरितां ग्रहणे सिद्धे उत्तरत्र प्रतिक्षेत्रं द्विगुणा द्विगुणा इत्यभिसंबन्धार्थ नदीग्रहणं कृतम् । ततो गङ्गासिन्ध्वोरुक्तो यश्चतुर्दशनदीसहस्रपरिमाण: परिवारः स उत्तरोत्तरक्षेत्रे द्विगुणो द्विगुण आविदेहात्तत उत्तरत्रैरावतपर्यन्तमर्धहीन इति सिद्धम् । तत्र तावद्भरतस्य विस्तारप्रमाणं प्रतिपादयन्नाह
अब उन नदियों की परिवार नदियों की संख्या बतलाते हैंसूत्रार्थ-गंगा सिन्धु आदि नदियां चौदह हजार परिवार नदियों से युक्त हैं।
चतुर्दश नदी सहस्र पद में तत्पुरुष तथा कर्मधारय समास है। पुनः परिवृता पद के साथ तत्पुरुष समास हुआ है । “गंगा-सिंध्वादय" पद में प्रथम द्वन्द्व समास होकर फिर बहुब्रीहि समास हुआ है । पूर्वगा और पश्चिमगा दोनों का संग्रह करने के लिये गंगा सिंध्वादि पद लिया है । यदि गंगा शब्द नहीं लेते तो निकट होने से पश्चिम समुद्र गामी नदियों का ही ग्रहण होता, और यदि सिंधु शब्द नहीं लेते “गंगादयः" ऐसा पद कहते तो पूर्व समुद्रगामी नदियों का ही ग्रहण होता, इसलिये गंगा के साथ सिंधु पद का भी ग्रहण किया गया है । प्रकरण वश से यद्यपि नदी शब्द नहीं लेवें तो नदी का अर्थ निकलता है, फिर भी आगे प्रत्येक क्षेत्र में दुगुणा दुगुणापने का संबंध जोड़ना है इसलिये इस सूत्र में "नद्यः" नदी पद का ग्रहण किया है। उससे फलितार्थ निकलता है कि गंगा और सिंधु का जो चौदह हजार नदी परिवार कहा है, वह उत्तरोतर के क्षेत्रों में दुगुणा दुगुणा होता है, यह क्रम विदेह क्षेत्र तक है, पुनः आगे ऐरावत क्षेत्र तक आधा आधा हीन होता गया है ।
भावार्थ-गंगा और सिंधु का नदी परिवार चौदह हजार नदी रूप है, रोहित रोहितास्या का नदी परिवार अट्ठावीस हजार नदी स्वरूप है । हरित् हरिकान्ता का छप्पन हजार नदी परिवार है। शीता शीतोदा का एक सौ बारह हजार नदी परिवार है । पुनः घटता हुआ नारी नरकान्ता का छप्पन हजार नदी परिवार है। सुवर्णकला