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________________ १४६ ] सुखबोधायां तत्त्वार्थवृत्ती चक्रपुरी, खड्गपुरी, अयोध्या, अवन्ध्याचेति नगर्यः । तेषु जनपदेषु गङ्गासिन्धुसंज्ञे द्वे द्वे नद्यौ । एकैको विजयार्धश्च । तेषां सर्वेषां विष्कम्भायामादिवर्णना पूर्ववद्वेदितव्या। सर्ववक्षारपर्वतेषु प्रत्येकं सिद्धायतनस्वनामपूर्वापरदेशनामानि चत्वारि कूटानि भवन्ति । शीतोदाया अपि तीर्थानि शीताया इवाष्टचत्वारिंशद्वेदितव्यानि । विदेहस्य मध्ये मेरुर्नवनवतियोजनसहस्रोत्सेधः । धरणीतले सहस्रावगाहो दश सहस्राणि नवतिश्च योजनानां दश चैकादशभागा अधस्तलेऽस्य विस्तारः। एकत्रिंशत्सहस्राणि नवशतान्येकादशयोजनानि किञ्चिन्नय नान्यधस्तलेऽस्य परिधिः । दशसहस्राणि योजनानां भूतलेऽस्य विष्कम्भः । एकत्रिंशत्सहस्राणि षट्छतानि त्रयोविंशानि योजनानि किञ्चिन्नय नानि तत्रास्य परिधिः । स चतुर्वनः, त्रिकाण्डः, त्रिणिः । चत्वारि वनानि-भद्रशालवनं, नन्दनवनं, सौमनसवनं, पाण्डुकवनं चेति । भूमितले भद्रशालवनं पूर्वापरं देशोनद्वाविंशतियोजनसहस्राण्यायतं, दक्षिणोत्तरं देशोनार्धतृतीययोजनशतान्यायतम् । एकयाऽर्धयोजनोच्छायपञ्चशतधनुर्विष्कम्भवनसमायामया बहुतोरणविभक्तया वैजयन्ती, जयन्ती अपराजिता, चक्रपुरी, खड्गपुरी, अयोध्या और अबन्ध्या हैं। उन जनपदों में प्रत्येक में दो दो गंगा सिंधु नदियां और एक एक विजयाध है । उन सभी का विष्कंभ आयाम आदि का वर्णन पूर्ववत् जानना चाहिये । सर्व ही वक्षार पर्वतों पर प्रत्येक में चार चार कूट हैं। उन कूटों के नाम-एक का सिद्धायतन कूट है, एक नाम अपने अपने वक्षार का है तथा शेष दो कूटों के नाम अपने अपने वक्षारों के दोनों पार्श्व भागों में स्थित देशों के जो नाम हैं वे नाम हैं। शीतोदा महानदी संबंधी तीर्थ भी शीता नदी के समान अड़तालीस हैं । इसप्रकार विदेह देशों का वर्णन किया। अब समेरु महा पर्वत का वर्णन करते हैं-विदेह के मध्य भाग में निन्यानवें हजार योजन ऊंचा सुमेरु पर्वत है, इसकी नींव भूमि में एक हजार योजन प्रमाण है। इस नींव का विस्तार [ चौड़ाई ] दश हजार नब्बे योजन और एक योजन के ग्यारह भागों में से दश भाग प्रमाण है। इस नींव की परिधि इकतीस हजार नो सौ योजन और ग्यारह योजन में कुछ कम प्रमाण वाली है । समतल भूमि में आने पर मेरु का विस्तार दश हजार योजन का है, इसकी परिधि इकतीस हजार छह सौ योजन और तेईस योजन में कुछ कम प्रमाण है । वह सुमेरु चार वन युक्त तीन काण्ड और तीन श्रेणि वाला है । चार वनों के नाम भद्रशाल, नंदन, सौमनस और पाण्डक वन हैं। समतल पर भद्रशाल वन है यह पूर्व पश्चिम दिशा में कुछ कम बाईस हजार योजन आयत [ लम्बा ] है और दक्षिण उत्तर दिशा में कुछ कम ढाई सौ योजन आयत है। यह वन पद्मवर वेदिका से वेष्टित है उस वेदिका की ऊंचाई आधा योजन, विष्कम्भ
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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