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________________ * विषय परिचय यह सुखबोधावृत्ति श्री भास्करनन्दि विरचित है यह तत्त्वार्थसूत्र की टीका स्वरूप है। तत्त्वार्थसूत्र में सम्यग्दर्शन के विषयभूत जीवादि सात तत्त्वों का वर्णन है। इसमें कुल दस अध्याय और सूत्र ३५७ हैं । प्रथम अध्याय में ३३ द्वितीय में ५३ तृतीय में ३९ चतुर्थ में ४२ पञ्चम में ४२ षष्ठम में २७ सप्तम में ३६ अष्टम में २६ नवम में ४७ और दशम में ६ सूत्र हैं। प्रथम अध्याय से चतुर्थ अध्याय तक जीव तत्त्व का निरूपण है । पञ्चम में अजीव तत्त्व का, षष्ठं और सप्तम में आस्रव तत्त्व का, अष्टम में बंध तत्त्व का, नवम में संवर और निर्जरा तत्त्वों का और अन्तिम दशम अध्याय में अंतिम मोक्ष तत्त्व का प्रतिपादन किया गया है। प्रथम अध्याय में मंगल श्लोक के अनंतर सुप्रसिद्ध 'सम्यग्दर्शन ज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः' सूत्र द्वारा ग्रंथारम्भ होता है । जैन द्वारा इस प्रकार मोक्षमार्ग का स्वरूप प्रतिपादित करने पर उस पर तथा मोक्ष के विषय में अन्य अन्य दार्शनिक अपना २ मंतव्य प्रस्तुत करते हैं । जैसे-सैद्धांत वैशेषिक कहता है कि आप्त द्वारा कथित मन्त्र तन्त्र दीक्षा और श्रद्धा का अनुसरण मात्र से मोक्ष होता है और मोक्ष का स्वरूप तो यही है कि आत्मा के सम्पूर्ण विशेष गुणों का विच्छेद हो जाना। तार्किक वैशेषिक द्रव्य गुण आदि छह या सात पदार्थों के ज्ञान मात्र से मोक्ष होना स्वीकार करते हैं। सांख्य-प्रकृति और पुरुष के विवेक ज्ञान से मोक्ष होना मानते हैं तथा आत्मा चैतन्यमात्र में अवस्थान ही मोक्ष है ऐसा इनका मन्तव्य है। निरास्त्रव चित्त की उत्पत्ति ही मोक्ष है और वह विशिष्ट भावना ज्ञान के बल से होता है ऐसी बौद्ध मान्यता है। परम ब्रह्म के दर्शन से मोक्ष होता है और वह आनन्द मात्र स्वरूप है ऐसा वेदान्ती का कहना है । पाशुपत, कोलिक, बार्हस्पत्य, ब्रह्माद्वैत इत्यादि अन्य मतों के मोक्ष के विषय में जो मान्यतायें हैं उन सबका टीकाकार ने सुन्दर रीत्या
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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