________________
द्वितीयोऽध्यायः
[ ११३ सर्वस्य ॥ ४२ ॥ पूर्वोक्ते तैजसकार्मणे शरीरे निरवशेषस्य संसारिणो जीवस्याहारकस्यानाहारकस्याप्यविच्छिन्न सन्तानरूपतया अनादिसम्बन्धिनी वर्तेते । कियन्ति पुनः शरीराणि सहैकत्रात्मनि सम्भवन्तीत्याह
तदादीनि भाज्यानि युगपदेकस्मिन्नाचतुर्व्यः ।। ४३ ॥ तच्छब्दस्तैजसकार्मणानुकर्षणार्थः । ते आदिनी येषां तानि तदादीनि, भाज्यानि विकल्प्यानि । युगपच्छब्द एककालार्थः । एकशब्दः सङ्ख्यावाची । प्राङभिव्याप्तयर्थः । चत्वारि शरीराण्य भिव्याप्येत्यर्थः । क्वचिदेकस्मिन्नात्मनि विग्रहगत्यापन्ने तैजसकार्मणे एव युगपद्भवतः । क्वचित्तैजसकामणौदारिकारिण, तैजसकार्मणवैक्रियिकारिण वा त्रीणि सम्भवन्ति । क्वचित्तैजसकार्मणौदारिकाहारकारिण चत्वारि शरीराणि सन्ति । पञ्च न सम्भवन्ति वैक्रियिकाहारकयोयुगपदेकत्रासम्भवात् । तहिं सकलसंसारिणां कार्मणशरीरादेवोपभोगसिद्धेः शरीरान्तरपरिकल्पनमनर्थकमित्याशङ्का निराकुर्वन्नाह
सूत्रार्थ-उक्त दोनों शरीर सर्व ही संसारी जीवों के होते हैं। जीव आहारक होवे चाहे अनाहारक दोनों के ही वे पूर्वोक्त तेजस कार्मण शरीर अविच्छिन्न संतान रूप से अनादि संबंध वाले हैं। - एक साथ एक आत्मा में कितने शरीर संभव हैं ऐसा प्रश्न होने पर कहते हैं
सूत्रार्थ-एक साथ एक जीव के उक्त दो शरोरों को आदि लेकर चार तक शरीर होना भाज्य है । सूत्र में तत् शब्द तैजस और कार्मण शरीर का सूचक है, वे दो हैं आदि में जिनके ऐसा तदौदीनि का समास है । भाज्य का अर्थ विकल्पनीय है। युगपत् शब्द एक काल का सूचक है। एक शब्द संख्यावाची है, आङ अभिविधि-अभिव्याप्ति अर्थ में है अर्थात् चार-तक शरीर होते हैं। किसी आत्मा में विग्रहगति में तैजस कार्मण ही युगपत् होते हैं। किसी जीव के तैजस कार्मण और औदारिक ये तीन होते हैं अथवा तैजस कार्मण वैक्रियिक ये तीन होते हैं। किसी जीव के तैजस, कार्मण, औदारिक और आहारक ये चार शरीर होते हैं। पांच शरीर एक साथ एक जीव के संभव नहीं है, क्योंकि वैक्रियिक और आहारक युगपत् एक जीव में नहीं रहते।
शंका-सभी संसारी जीवों के कार्मण शरीर से ही उपभोग की सिद्धि हो जाती है दूसरे शरीरों को मानने की क्या आवश्यकता है ?
समाधान-इसी शंका का निवारण करते हैं