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________________ द्वितीयोऽध्यायः [ ८९ निर्देशोऽनन्तत्वख्यापनार्थः । संसारिणां विशेषप्रतिपादनार्थमाह इसप्रकार दस हजार वर्ष के जितने समय हैं उतनी बार वहीं उत्पन्न हुआ और मरा । पुनः आयु में एक एक समय बढ़ाकर नरक की तैतीस सागर आयु समाप्त की। तदनन्तर अन्तर्मुहूर्त आयु के साथ तिर्यंचगति में उत्पन्न हुआ और पूर्वोक्त क्रम से उसने तिर्यंचगति की तीन पल्य आयु समाप्त की । इसी तरह मनुष्य गति में अन्तर्मुहूर्त से लेकर तीन पल्य की आयु समाप्त की । देवगति में नरकगति समान कथन करना किन्तु विशेषता यह है कि यहां इकतीस सागर आयु समाप्त होने तक कथन करना चाहिये । यह सब मिलकर एक भव परिवर्तन होता है। भाव परिवर्तन-यह गहन गंभीर परिवर्तन है इसमें कषायाध्यवसाय स्थान, स्थिति बंधाध्यवसाय स्थान, अनुभाग बंधाध्यवसाय स्थान ये सब ही असंख्यात लोक प्रमाण हैं, कर्मों के स्थिति भेद आदि भी असंख्यात हैं । योग स्थान जगत् श्रेणि के असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं। इनका जघन्य से उत्कृष्ट तक परिवर्तन करना । सब प्रकृतिबंध, स्थितिबंध, अनुभागबंध और प्रदेशबंध के स्थानों को प्राप्त करने पर एक भाव परिवर्तन होता है । इस परिवर्तन का विशेष वर्णन सर्वार्थसिद्धि आदि ग्रंथ से जानना चाहिये। इन पांचों परिवर्तनों में से एक एक का भी काल अनंत है फिर द्रव्य परिवर्तन से अनन्त गुणा क्षेत्र परिवर्तन का काल है, उससे अनन्तगुणा काल परिवर्तन का उससे अनंतगुणा भव परिवर्तन का और उससे अनन्त गुणा भाव परिवर्तन का काल है । एक भाव परिवर्तन पूर्ण होने में जितना काल लगता है उस काल में अनन्त भव परिवर्तन हो जायेंगे ऐसे ही कालादि परिवर्तनों के विषय में समझना। जिसप्रकार एक मास में अनेक दिन, एक दिन में अनेक घंटे, एक घंटे में अनेक मिनिट और एक मिनिट में अनेक सेकेन्ड हो जाते हैं अथवा अनेकोंबार सेकेन्डों का परिवर्तन हो तो एक मिनिट होता है, अनेकोंबार मिनिटों का परिवर्तन हो तब एक घंटा होता है, अनेकोंबार घंटों का परिवर्तन हो तब एक दिन होता है और अनेकोंबार दिनों का परिवर्तन होने पर एक मास पूर्ण हो पाता है, इसीप्रकार एक भाव परिवर्तन में अनन्त भव परिवर्तन, एक भव परिवर्तन में अनंत काल परिवर्तन, एक काल परिवर्तन में अनन्त क्षेत्र परावर्तन और एक क्षेत्र परावर्तन में अनंत द्रव्य
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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