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________________ प्रथमोऽध्यायः [ ६१ न्तरविशेषादनेकधापि भवति । सम्यक्स्वजात्यविरोधेन समस्तमेकत्वेन गृह्यतेऽनेनेति संग्रहः । यथा सर्वं सदिति सर्वस्य सत्त्वाविशेषाच्छुद्धसंग्रहः । तथा द्रव्यमिति घट इति च द्रव्यत्वघटत्वावान्तरसामान्येन सकलजीवादिद्रव्यसौवर्णादिघटव्यक्तीनां संग्रहणादशुद्धसंग्रहो विज्ञेयः। संग्रहगृहीतोऽर्थस्तदानुपूर्येणैव व्यवह्रियते भेदेनाद्रियतेऽनेनेति व्यवहारः । यथा यत्सत्तद्रव्यं गुणः पर्यायो वेति । वस्तुसामान्यशक्तयपेक्षो वर्तमानपर्यायमृजु प्रगुणं सूत्रयति गमयतीत्ययमृजुसूत्रः । अतीतानागतयोविनष्टानुत्पन्नत्वेन व्यवहाराभावान्निश्चयात्सूक्ष्मः । एकसमयमात्रो वर्तमानोऽस्य विषयः । यथा यत्सदनुभूयमानं तत्क्षणिकमिति । उपचारात्तु समयसन्दोहः । स्थूलस्वभावो यथा मनुष्यपर्यायो मनुष्यः । देवपर्यायो देव इति । तमेवर्जुसूत्रविषयं लक्षणसिद्धेन शब्देन शब्दयति प्रतिपादयतीति शब्दः । यथा मनोर्नामकर्मणो जातो मनुष्यः । दीव्यतीति देवः । अथवा लिङ्गसङ्ख्यासाधनकालोपग्रहकारकभेदेन भिन्नमर्थं शपयति प्रतिपादयत्यनेनेति शब्दः । यथा पुष्यस्तारका नक्षत्रमित्यत्र लिङ्गभेदेन भिन्नार्थाभिमननम् । लंबन लेने वाला इनको विषय करनेवाला नय अर्थ व्यञ्जन पर्यायार्थ नैगम नय कहलाता है । एक समस्त संग्रह रूप द्रव्यार्थ होता है और एक भेद रूप द्रव्यार्थ होता है इसतरह दो द्रव्यार्थ या धर्मी के अस्तित्व का अवलंबन लेनेवाला संग्रह व्यवहार द्रव्यार्थ नाम का नैगम नय है। द्रव्यार्थ है और पर्यायार्थ है इसप्रकार द्रव्य और पर्याय के अस्तित्व का अवलंबन लेनेवाला द्रव्य पर्यायार्थ नैगम नय है, इसप्रकार नैगम नय तीन प्रकार का है और इसके अवान्तर की विशेषता से अनेक भेद भी होते हैं। विशेषार्थ-यहां तत्त्वार्थ वृत्ति में नैगम नय के तीन भेद इसप्रकार किये हैंदो धर्म-अर्थ पर्याय और व्यञ्जन पर्यायों को गौण मुख्यता से ग्रहण करनेवाला अर्थव्यञ्जन पर्यायार्थ नैगम । संग्रह और व्यवहार के विषयभूत अभेद और भेदरूप द्रव्यार्थ को गौण मुख्यता से ग्रहण करनेवाला संग्रह व्यवहार द्रव्यार्थ नैगम है । द्रव्य और पर्याय को गौण मुख्यता से ग्रहण करनेवाला द्रव्य पर्यायार्थ नैगम है, इन तीनों का कथन करके इनके अन्य अन्य भेदों की सूचना दी गई है । तत्त्वार्थ श्लोकवार्तिक ग्रंथ में नैगम के नौ भेद किये हैं जो इसप्रकार हैं-प्रथम ही नैगम के तीन भेद हैं-पर्याय नैगम, द्रव्य नैगम, द्रव्य पर्याय नैगम । इनमें पुन: पर्याय नैगम नय के तीन प्रभेद हैं, अर्थ पर्याय नैगम, व्यञ्जन पर्याय नैगम और अर्थ व्यञ्जन पर्याय नैगम । द्रव्य पर्याय नैगम के दो भेद हैं-शुद्ध द्रव्य नैगम और अशुद्ध द्रव्य नैगम । द्रव्य पर्याय नैगम के चार चार भेद हैं-शुद्ध द्रव्यार्थ पर्याय नैगम, शुद्ध द्रव्य व्यञ्जन पर्याय नैगम, अशुद्ध
SR No.090492
Book TitleTattvartha Vrutti
Original Sutra AuthorBhaskarnandi
AuthorJinmati Mata
PublisherPanchulal Jain
Publication Year
Total Pages628
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Tattvartha Sutra, Tattvartha Sutra, & Tattvarth
File Size18 MB
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