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रखते
हुए जगत के जन (जन्म भोधिविवर्तपातनपरा : ) संसार समुद्र के भँवर में पटकने वाले (सर्वाः क्रियाः) सर्व आचरणोंकों ( कुर्वन्ति ) करते रहते हैं ।
तस्वभावना
भावार्थ - यहां पर आचार्य ने दिखलाया है कि विवेकी पुरुष वयों को नीचे को उत्तको विचारते रहना चाहिए
(१) मेरा कौन-सा काल है ?
उत्तर- मेरा काल बालक है, युवा है या वृद्ध है, अथवा यह समय कैसा है । सुभिक्ष है या दुर्भिक्ष है। रोगाक्रांता है या निरोग है | अन्यायी राज्य है या न्यायवान राज्य है, चौथा काल है या पांचमा दुखमा काल है ।
(२) मेरा अब कौन-सा जन्म है ?
उत्तर -- मैं इस समय मानव हूँ, देव हूं या नारकी हूं राजा हूं या रंक हूं ।
(३) मैं अब किस तरह बर्ताव करूं ?
उत्तर- इसका उत्तर विचार करते हुए अपना ध्येय बना लेना चाहिए कि मैं क्या इस समय मुनिव्रत पाल सकता हूं या क्षुल्लक, ऐलक व ब्रह्मचारी श्रावक हो सकता हूं, या में गृहस्य में रहते हुए धर्म साध सकता हूं, या में गृहस्थ में रहते हुए कोनसी प्रतिमा के व्रत पाल सकता हूं, या मैं आजीविका के लिए क्या उपाय कर सकता हूं अथवा मैं परोपकार किस तरह कर सकता हूं ।
( ४ ) इस जन्म में मेरा हितकारी कर्म क्या है ? उ०- मैं इस जन्म में मुर्ति होकर अमुक-२ शास्त्र लिख सकता