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________________ आत्मध्यान का उपाय बिन्दुओं पर जप जावे । यह मनको जाप चित्तको अधिक एकान रखने वाली है। कमल को जाप का चिन्न जापके पोछे ध्यानका अभ्यास करे, सुगम रीति यह है कि अपने शरीर को एक घड़ा माने और अपने आत्मा को निर्मल गंगाजल माने और उसमें मनको बार-बार डुबाने का अभ्यास करे । जब मन हटे तब ॐ या सोहं या अहं या सिद्ध ऐसा कोई मन्त्र जपले था आत्मा के शुद्ध गुणों का चिन्तवन करले, ऐसे बारबार मनको नानेका अभ्यास करे। दूसरी रीति अनेक हैं। श्री ज्ञानार्णवजी में चार प्रकार ध्यान बसाया है इनमें से किसी एक रीतिको लेकर ध्यान करें । वे चार प्रकार ध्यान हैं-(१) पिंडस्थ ध्यान, (२) पदस्थ ध्यान, (३) रूपस्थ ध्यान, (४) रूपातीत ध्यान। इसका वर्णन आगे देते हैं। जब ध्यान कर चुके तब फिर कायोत्सर्ग खड़ा हो जावे या खड़ा हो तो वैसे ही नौ दफे णमोकार मंत्र पढ़े और अंतिम दंडवत करके सामायिक विधिको पूर्ण करे।
SR No.090489
Book TitleTattvabhagana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prasad Jain
PublisherBishambardas Mahavir Prasad Jain Saraf
Publication Year1992
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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