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एकांत सेवन विचार
एक ज्ञानी आत्मा विचारता है कि वस्तु का जो स्वभाव है वही मेरा धर्म है। इस आत्मा का स्वभाव चैतन्यमयो दर्शन ज्ञान का बारक मूर्तिक है । लेकिन वह अनादि कर्म बन्धन के कारण से चतुर्गति रूप संसार में भ्रमण करता हुआ अनंत काल अनेक पर्यायें धारण करता फिरा है इसलिए इसको परपदार्थों से भिन्न अनंत दर्शन ज्ञानमयी सचिदानंदरूप सम्यग्दर्शन है, और जो न्यूनाधिकता रहित सूक्ष्म भेदों सहित जाना जाता है वह सम्यग्ज्ञान है, और जो स्वरूप में लीन हो जाना सो सस्य कचारिन है इसलिए निश्चय से मेरा धर्म श्रात्मस्वरूप है। इसको बिना पहनाने मेरा निम्तारा नहीं होगा ।
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