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________________ आत्मध्यान का उपाय मंदस्वरसे पढ़ जावे । पाठ पढ़नेसे मन सब तरफसे खिष मावेगा घ तत्वकी भावना हो जायेगी। इस पुस्तक में १२० श्लोकों का बड़ा सामायिक पाठ है, जो थिरता हो तो इसीको पढ़ जावे । अर्थ समझ सके तो संस्कृत मात्र पढ़े नहीं तो हरएक श्लोक में भाषा छन्द दिए हुए हैं उन १२० भाषा छन्दोंको पढ़ जावे । मादि थिरता न हो तो छोटा सामायिक पाठ बत्तीस श्लोको का पढ़े जो इस पुस्तकके अन्त में संस्कृत और उनके भाषा छन्द सहित दिया हमा है। फिर णमोकार मन्त्र को या अन्य किसी मंत्रकी जाप १०८ बार एक दफे या कई दफे जपे । जाप जपने को माला भी दाहने हाथमें ले सकता है जिसको अंगूठेके पासको उंगली पर लटकावे व मंत्र एक-एक दाने पर पढ़ता हुआ अंगूठे से सरकाता जावे या हाषकी अंगुलियों से ही अप सकता है। एक हाथमें १२ खाने हैं उनको पूर्णकर दूसरे हाथ के एक खाने पर अंगूठा रखता रहे, इस तरह जब बाएँ हाथ के नौ खाने पूरे हो जावें तब एक जाप हो जावे। जप करते हुए हाथों को फैलाकर काममें ले सकता है। तीसरी रीति जप करने की यह भी है कि एक कमल आठ पत्तेका हृदयस्थान में बनाले, हरएक पत्ते पर बारह बिन्दु रखले, बीचमें भी घेरे में बारह विन्दु रखले तब १०८ विन्दुओं का कमल हो गया। अब एक-एक पत्ते को लेता हुआ बाईं तरफसे दाहिनी तरफ जपता हुमा आवे या पहले पूर्व दिशा के पत्तेके १२ विन्दु पर १२ दफे मंत्र जप जावे फिर पश्चिमके पत्ते पर, फिर दक्षिणके, फिर उत्तरके पत्ते पर जपकर पूर्व दक्षिण के कोनेके पत्तेको जपे, फिर दक्षिण पश्चिम के, फिर पश्चिम उत्तरके, फिर उत्तर पूर्व के पत्ते पर, फिर बीचके बारह
SR No.090489
Book TitleTattvabhagana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prasad Jain
PublisherBishambardas Mahavir Prasad Jain Saraf
Publication Year1992
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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