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________________ तत्त्वभावना को बताया है जो बात अन्य शास्त्रों में नहीं मिलती है। दृष्टांत में पदार्थ न सर्वथा नित्य है न सर्वथा अनित्य है। हर समय पदार्थ नित्य अनित्य स्वरूप है । गुणों के व स्वभावों के ध्रुवपने की अपेक्षा पदार्थ नित्य है जब कि पर्यायों के पलटने की अपेक्षा पदार्थ अनित्य है । अवस्थाएं हर समय होती रहती हैं,इस तरह का कथन जिनवाणो ही स्पष्ट खोलकर बताती है। यह अवश्य मुक्तिरूपी स्त्री के मिलने के लिए दुती है क्योंकि जो श्रुतज्ञान द्वारा भेदविज्ञान का लाभ करते हैं और पर से भिन्न वात्मा को अनुभव करते हैं वे सीधे मोक्षरूप स्त्री की ओर चले जाते हैं ऐसी जिनवाणीके कहे हुए तत्वों को श्रद्धान करने वाले व कहते सुनने वाले बहुत कठिन हैं । परन्तु जो तत्वज्ञान के अनुसार मुनि हो मात्मध्यान का अभ्यास करके केवलज्ञान को प्राप्ति का उद्यम करते हैं ऐसे महान पुरुष तो बहुत ही दुर्लभ हैं। उनके सम्बन्धमें क्या शब्द कहा जावे सो कोई शब्द नहीं मिलता है । प्रयोजन यह है कि मात्मानुभव के उद्योग को बड़ा हो अपूर्व लाभ जान करके जो मात्माहित करना चाहें उनको प्रमाद न करके मुक्ति का साधन कर लेना चाहिए। श्री पश्यनंदि मुनि जिनवाणी की स्तुति में कहते हैंकदाचिदेवत्ववनुग्रहं विना श्रुते ह्यधोते पि सत्वनिश्चयः। ततः कुतः पुंसि मद्विवेकिता त्यया विमुफ्तस्य तु जन्मनिष्फलं १११ त्वमेवतीर्थ शुचि बोधिवारिमत् समस्तलोकनयशुद्ध कारणं । त्वमेव चानंबसमुद्रवर्धने, मगांकमूतिः परमार्थदशिनाम् ।।३४३ मावार्थ-हे जिनवाणी माता, तेरी कृपा बिना शास्त्र को
SR No.090489
Book TitleTattvabhagana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prasad Jain
PublisherBishambardas Mahavir Prasad Jain Saraf
Publication Year1992
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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