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________________ १६० ] तत्त्वभाबना जिसको संसार के दुखोंसे भय नहीं है तथा जिसके चित्तमें शरीर के सुख से वैराग्य नहीं भया है उसकी दीक्षा भी इस जगत में भोगों के लिए है मुक्ति पाने के लिए नहीं है। मल श्लोकानुसार शार्दूलविक्रीडित छन्द जो जागे निज तन विलासपथ में सो मुर्ख जाने नहीं। क्या हितकर क्या नाशकर सुकर्तव निजआत्म करता नहीं ।। जो चाहे परमात्म धाम अपना तन मोह करता नहीं। बुध निज कारण सिद्धकाज उल्टा कब ही ज चलता नहीं ।।७२ उत्थानिका--आगे कहते हैं कि बुद्धिमान को व्यर्थ कार्य न करना चाहिए। भीतं मुंदति नांसको गतघणो भषो या मा ततः। सौख्यं जातु न लभ्यतेऽभिलषितं त्वं माभिलाषोरिवं ।। .: प्रत्यागच्छति शोचितं न विगतं शोक वृथा मा कृथाः । प्रेक्षापूर्वविधायिनो विवधते कृत्य निरयं कथम् ॥७२॥ अन्वयार्य---(गतघृणः) दया रहित (अंतक:)यमराज (भोतं) जो मरणसे इरता है उसको (न मुंचति) छोड़ता नहीं है (ततः) इसलिए (वृथा) बेमतलब(मा भैषीः)डर न कर (अभिलाषितं) अपना चाहा हुआ (सौख्यं) सुख (जातु) कभी (न लभ्यते) नहीं प्राप्त होता है इसलिए (त्वं) तू (इदं) इस सुख की (मा अभिलाषी:) इच्छा न कर (विगतं) जो मर गया नष्ट हो गया (शोचित) उसका शोच करने पर (न प्रत्यागच्छति) लौट कर नहीं आता है इसलिए (वृथा) बेमतलब (शोक मा कृषा:) शोक न कर (प्रेक्षापूर्वविधायिनः) समझकर काम करने वाले विद्वान (निरर्थम्) बेमतलब (कृत्यं) काम (कपम् ) किस लिए (विदघते) करेंगे?
SR No.090489
Book TitleTattvabhagana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prasad Jain
PublisherBishambardas Mahavir Prasad Jain Saraf
Publication Year1992
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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