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________________ तत्त्वभावना [ १७७ अर्थात स्वयं चंचल व अनिष्ट पदार्थों में लुभाने से दुःख ही प्राप्त होगा। मूल श्लोकानुसार मालिनी छन्द असि मसि कृषि विद्या शिल्प वाणिज्य करके। वपु धन सुत अर्थे श्रम करे मोह करके । असश्रम इक पारं संयमार्थे करे तू ॥ शुचि सौख्य अनंतं भोग कर ही रहे तू ॥६६।। उत्थानिका-आगे कहते हैं जो संयम का साधन करते हैं वे अवश्य मोक्ष प्राप्त करते हैं। सुख त पागनाता गगाना । भवति सपदि कर्ता सईलोकोपरिस्थः । विवशशिखरिमर्धाधिष्ठित्तस्येह पुंसः । स्वयमवनिरस्ताज्जायते नाखिला किं॥६॥ अन्वयार्ष-जो संयम पालन करता है वह (सपदि) शीघ्र (सर्वलोकोपरिस्थ:) सर्व लोक के ऊपर सिद्ध क्षेत्र में विराजमान होता हुआ (सुखजननपटूनां) आत्मीक आनन्द को पैदा करने में कुशल ऐसे पावनानां गुणानां)पवित्र गुणों का(कर्ता)करनेवाला अर्थात अपने अनन्त ज्ञान, दर्शन, सुख, वीर्यादि गुणों में परिणमन करने वाला (भवति).रहता है(इह)इस जगत में (त्रिदशशिखरिमूर्धाधिष्ठितस्य पुंसः) सुमेरु पर्वतके मस्तक पर बैठे हुए पुरुषके लिये (कि) क्या(अखिला अवनिः)यह सकल पृथ्वी (स्वयं)अपने आप ही (अधस्तात्) नीची (न जायते)नहीं हो जाती है ? अर्थात् अवश्य हो जाती है।
SR No.090489
Book TitleTattvabhagana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahavir Prasad Jain
PublisherBishambardas Mahavir Prasad Jain Saraf
Publication Year1992
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size6 MB
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