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मध्यमस्याद्वादरहस्य स्वयः-३
पग्रमणितीयोंद्धारक प्रशनिस्वभाव पूज्यपाद गुरुदेवश्री विश्वकल्याणविजयजी महाराज मेरे लिये सदैव स्मरणीय . बंदीय - उपासनीय बने रहेंगे, जिनकी पाचन प्रेरणा से रत्नत्रचीसग्निा में नयी उद्योगउमियाँ उमड़ रही हैं ।
निस्वार्धपरार्थव्यसनी पडदर्शनपरिकर्मिनान सूक्ष्मप्रज्ञासम्पन्न तपांगत मुनिराजश्री पुण्यरत्नविजयजी महाराज को कदापि भूल नहीं सकना, जिन्होंने प्रस्तृत संपूर्ण ग्रन्थ के टीकाद्धययुक्त नीना खंडों के मंशोधन की जबाबदारी उदारता से स्वीकृत की और प्रसन्नता एवं नि:स्वार्थता से निभाई ।
प्रारम्भिकन्यायादिविद्याप्रदाता संपर्मकला मुनिराजनी अभयशेखरविजयजी महाराज, प्राकृतादिविद्यादाता सदाप मन्त्र मुनिराजश्री अजितशेखरविजयजी महाराज, रत्नत्रयीसमाररावक अात्माय कल्यागभित्र मुनिवरश्री कल्याणगेधिविजयजी महाराज, श्रीमुक्तिबल्लभविजयजी महाराज, श्रीचिमलनोधिविजयजी महाराज, श्रीयुगसुन्दरविजयजी महाराज आदि तथा सहवर्ती सब मुनिभगवंतो के सहकार को भी में नहीं भूल सकता ।
इस गन्ध का अध्ययन कर के मुमुक्षुत्रगं कदाग्रहरिपमुन होकर विश्वकल्याणकर एवं विश्वमहाटकर अनेकान्तवाद का उपासक बन कर जात्मश्रेय और प्रेम को प्राप्त कर यही मङ्गलकामना ।
गुरुपादपमरणु मुनि यशोविजय कारसूरि आराधना भवन, सुरन, वि.सं. २०४०..
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