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________________ मध्यमस्याद्वादरहस्ये खण्ड: - ३ प्रकाशकीय वक्तव्य held meter dan (get ast) ei miten de ceus) à quattr कम और तीन खान प्रस्तुत करते हुए हम अपूर्व आनंद स्वादरूप ( महम) की अनुभूति कर रहे है। प्रकृतीस्खा में के को es la BUJANGIÇ er nicht aus siege tante मुदित है। केासकों के गलत गरायों तंत्र में समीक्षा की है हरि हेरेबलाइट्स, रेन्महोणस, परमेश तंत्र देमल, रिपेनोशा, शोपाहार आभारोइस, एरिस्ट प्लेटले हिलेल आदि मिलोसोफरों की भात वयों को भी सरखा समालोचना जलता के तीनों खानों में की है, जिसका पता हमें तीनों स्वा की विषमादक परम आने पर मिला है // काल करने से 1 जैव की अल्पता का भी हमें काम झाा प्राप्त हुआ। साथ ही सुगम एवं स्पष्लरूप से स्वाद रहस्य ( महम) के पदार्थभावार्थ का चोरा करताली रमणीय हिन्दी व्याख्यातो तो 'सोतो में ' कहावत चरितार्थ कर दी है। जैसे उपयोगी महत्त्वपूर्ण कोन दालीक अन्य की संस्कृत एवं हिन्दी भाषा के माध्यम से इतनी सुन्दर व्याख्या प्रस्तुत करने के लिये हम मुनिश्री गोविजीका करते हैं और रखते हैं कि इस प्रकार के संघों की संस्कृत-हिन्दी-गुजराती भाषा के माध्यम से व्याख्या करते हुए महोपाध्यायजी महाराज के साहित्यको हित एवं स्पष्ट कर के प्राथमिक अभ्यासुर्ग के बनायें तथा तिस्तान से अध्यापनक्षेत्र की सीमा से बाहर रह गये श्रम के अनंत अमुल्य संथों को क्षेत्र में लाने का श्रेय और प्रेम करे तथा उन ग्रंथों जातीयों के प्रकाशन का नाम हमारी संस्था को देने के लिये उभारता प्रदर्शित करें। परत महत्वपूर्ण के स्वाम की दोनों व्याख्यानों में मुति रहने पायेतदर्थ कदिपरिकर्मितमति सस्ती निधी पुनस्त्नविजयजी महाराज को संशोधन के लिये पर्ला पश्चिम लिया है। अभी कमी है। कार्य में कोई क्षति रह जाए उसके लिये व्याख्याकार गुलियोले भी है। फिर भी गुलक कोई पुर समर्थ में कमांक उदास उसवम परेशान करने के के और सूरची महारान से निर्मितीत कारकों का महान श्रीजगारविरति (महराम) recen सेमारी है । प्रकाशन के समयावधि में सर्वाभ सदर कम्पोज सेटिंग मुद्रमदि कार्यसोहेल तृतीय स्थान के प्रकाश में पार्थ कोम्नसंवाले अजमाई तथा भाई को भी सविन सोच है भी हमारे नियति स्त भुवनभानु सूरीश्वरजी महाराजा को पुनित प्रेरणा से प्रारम्भ हमारी संस्था को आज भी उनकी दिव्य कृपा से ऐसे भारतीय प्रवल रहा है। इस बात का हमें गौरव है और भी ऐसे साल के प्रकाशन कालाहारी संख्या को मिलता हो ऐसे - की हम प.पू. गुरु से करते है प्रवारी समुद्रास इसका सकरके पारमार्थिक विश्कों के की ओर मचे करे यहाँ एक शुभेच्छा / परमपूज्य सिद्धांत दिवाकर गाभिने अन्य श्रीमद्विजयजय सूरीधरजी म.सा. पासवरी पद्मसंनविजयजी गणिवर की शुभम जैन संघ हुबली श्रीगोडीजी महाराज ट्रस्ट, पानी की निजी विजयी कसे वागर जैन संघ, गोग्गॉन बम्बई की ओर से ज्ञाननिधि से शर्थिक सहयोग मिला है लिं. विकवमिट्रस्ट के ट्रस्टी कुमारपाल वि. शाह भरतभाई चतुरवास शाह मयंक भाई शाह आदि
SR No.090488
Book TitleSyadvadarahasya Part 3
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
Author
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size16 MB
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