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________________ विपय कालप्रत्यक्षविचार: मनःप्रकरणसंवादावेदनम् संथा अतिरिक्त मन असिद्ध पृथिव्याः स्वेतरभिन्नत्वविचारः तत्वार्थसूयाद्वदलाकरसंवाद आधुनिक विज्ञानमिद्धान्तमण्डनम् उदेश्य विधेयभावमीमांसा - विशेषता दापग्रस्त दीधितिसंगठ स्याद्वादी विधेयतासमनिश्तरूप से व्यापकलालाभ अमान्य परिष्कृत व्यापकता भी दोस्त विशेषान्वषितावकसंसर्गविचार: सिद अननादव्यवादिना व्यापकत्वापादनम् धनं मे अन व्यापकता | सत्पदप्रयोजनप्रकाशनम् विधेयत्ावच्चिन समयापकता का भान दोषग्रस्त दीधित्युक्तिव्याख्यानम् नानाविधेषतावच्छेदकस्थले व्यापकत्वमीमांसा चरमपत्र की तावदन्यतम में लक्षणा भी दोषग्रस्त न्यायसूत्रसंवाद : पट्टाभिरामोक्ल्यतिदेशव अस्वरसबीजावेदनम अन्यतमत्व में लक्षणा अन्य विज्ञान भेद में ही लक्षणा प्रामाणिक मथुरानाथसम्मतिदर्शनम् विभाग यूनाधिकरूपवज्ञापक है प्राचीन नैयायिक लीकापनमतनिरामः नच नैयायिक तरीण्डिन्यन्यायनिरुपणे पात अनमहाभाष्यसंवादः पदानुपस्थित रूप से शान्दवीध नृत्यमला अनरसीजविचार: वृहद्रव्यसङ्ग्रह - तद्वृत्तिसंवादः आत्मस्वरूपविचार सिद्धहेगशब्दानुशासनसंपाद ज्ञानमय आत्मा श्रुतिरिव वृहदारण्यकोपनिषदादिसंवादः मुकावनीनिरामः आत्मधर्म लाभ नहीं ब्रह्मवैवर्त देवीभागवत - योगसूत्र- साख्यसूत्रादिसंवादः कालिकनिर्युकन्पतिदेशः जालादि पुणधर्म है स्याद्वादी पुष ७५% 1530 ७३५. ५४० vet ७५३ '७' ७८३ ७४४ 'x' دام رابان ७५६ 9j's ७५८ 'Y ९. २ ? २. ५५ 3 '७५४ ७६ ७५६ 1046 346 1956 ए ७० NF C ६. ४ દુઃ विषय अष्टमीमांसा आत्मा ज्ञाना ज्ञानोभयात्मक है आत्मा में केवल गुणस्वभावत्व है आत्मनः गुणस्वभावत्वसाधनम् भात्मनि दोपस्थपाधिकता विद्यानन्द का वक्तव्य प्रतिवन्दिग्रस्त भट्ट दिगम्बर-मीमांसक प्रतिबन्दिः मध्यमस्थाद्वादरहस्ये खण्ड: पृष्ठ ७०२ - - ७६२ अटसहस्रीकार ७६२ ७६२ ७६५ भट्ट 'सुगममवाप्तमितिप्रतीतिविचारः ज्ञान और अन्नान एकत्र अतिगंधी भट्ट भांशभेद: ज्ञानाज्ञानी भयस्वभाववादी भट्ट के मत की समालोचना भावस्वरूपाऽज्ञानानीकारः 'सामहं न जानामि प्रतीति की उपनि होनामायन्यानप्रतिबन्धकताविचार: तदनवोक सदभावावच्छेदक नहीं हो सकता साङ्ख्यकारिका माठरवृन्यादिसंवादः पुरुष सर्वथा निप है सांख्यमत नेवापिकसंगत कूटस्थत्व आत्मा में नामुमकिन- सांख्य कूटस्थवनिरुक्तिः प्रकृति का ही बन्ध- मोक्षादि सांख्यमत मायाद साङ्ख्यकारिकासंवादः सांख्यमतनिरास सांख्यकारिकानिराकरणम् आत्मा देकपरिमाणवा आत्मविभुत्ववादारम्भः आत्मा में मूर्त्तत्व है वराहमिहिर गर्ग पाचिकसंवादः आत्मा सक्रिय है कालस्य परिणामिनिमित्तमात्रत्वम् अदूर स्वापसंयोगसम्बन्ध से जन्यसंद का जनक पाषिक अदृस्य कारणत्वमीमांसा काशिकानन्दिसंवादः अदृष्ट में कालिकाबच्चि कारणता मुनासिव कालिकसम्बन्ध से अकारणतापक्ष में गौरव शंका जन्यतावच्छेदकविचार: जन्यसत्त्व में कार्यतावच्छेदकता मुमकिन महत्त्वस्य त्रिविधकारणावेदनम् महत्त्व में द्रव्यप्रत्त्वकारणता से आत्मभवसिद्धि का प्रयास नृसिंहमतनिरूपणम् ७६५ ७६६ ७६६. ७६ ७६७ ७६८ ७६८ ६९. ७६९ 'S' ७७० 065 ७७१ ७१ ডঙ२ ७७३ ৬৬३ ७७४ ७७५ یا دواي ७: ७५६ 'U'sty Sis ७:५८ 19.30 yuye, 19199 ७८० ረ 364 ७८५ ७८२
SR No.090488
Book TitleSyadvadarahasya Part 3
Original Sutra AuthorYashovijay Upadhyay
Author
PublisherDivya Darshan Trust
Publication Year
Total Pages363
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size16 MB
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