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________________ उत्थानिका (कन्नड़ टीका)-अवरोळभ्यंतरकारणंगळाबुवेने पेळल्वेदि बंदुत्तरश्लोक-चतुष्टयम् उत्थानिका (संस्कृत टीका)-एवं विधात्मस्वल्पप्राप्तो उपायं पनाह सदृष्टिज्ञानचारित्रमुपाया स्वात्मलब्धये । तत्त्वे याथात्म्य-सौस्थित्यमात्मनो दर्शनं स्मृतम् ।। 11 ।। कन्नड़ टीका-(उपायाः) कारणमक्कुं (किम्) आवु? (सदृष्टिशान-चारित्रम्) सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्रंगळ परिपूर्णते (कस्यै) आवुदक्के? (स्वात्मलब्धये) अनन्तज्ञानादिरूपमप्प स्वल्पप्राप्तिगे (तत्र दर्शनं किम्) अवदोळु दर्शनवावुदु? (दर्शनं स्मृतम्) दर्शनमेन्दु पेळेपदुदु (किम्) आबुदु? (याचात्म्य-सौस्थित्यम्) स्वरूपमनतिक्रमिसदे स्थिरमप्प निलवु (क्य) एल्लि? (तत्त्वे) स्वरूपदल्लि (कस्य) आवन? (आत्मनः) आत्मक्के । संस्कृत टीका-(स्वात्मलब्धये) निजात्मस्वल्पप्राप्तये (सदृष्टिज्ञानचारित्रम्) सम्यग्दर्शनशानचारिवाणि (उपाय:) कारणं, तेषु मध्ये, (तत्त्ये) सप्तविपतत्त्येषु (आत्मन:) जीवस्य (याथात्म्य सौस्थित्यम्) वस्तुस्वरूपं यत्प्रकारेण स्थितं, तरकारेण श्रद्धानरूपाचलसुस्थितित्वं (दर्शनं स्मृतम्) सम्यक्त्वमभ्युपगम्यते । भेदकरणं व्यवहारः, स एव निश्चयस्य कारणत्यात्-इत्युभयसम्यक्त्वस्वरूपमस्मिन् प्रतिपादितमिति भावार्थ:। उत्थानिका (कन्नड़)-उनमें से (पूर्वोक्त कर्ममोक्ष के उपायों में से) अभ्यन्तर कारण कौन-कौन से हैं? इसका उत्तर देने के लिए आये हैं आगे के चार श्लोक उत्थानिका (संस्कृत)-इस प्रकार आत्मस्वरूप की प्राप्ति के उपाय बताते हुए कहते हैं। हिन्दी अनुवाद (कन्नड़ टीका)-कारण होंगे हैं), कौन? सम्यादर्शनसम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र की परिपूर्णता, किसके लिए? अनन्तज्ञानादिरूप आत्मस्वरूप के साक्षात्कार के लिए। उनमें से दर्शन (का स्वरूप) क्या है? कहा गया है कि यह दर्शन है, किसको? स्वरूप (की मर्यादा) का अतिक्रमण किये बिना (उसमें) भली भाँति स्थिर होकर रहना, कहाँ? आत्मस्वरूप में, किसके? आत्मा के या अपने। 1. 'मुपाय:' इति सं० प्रति पाठः । 35
SR No.090485
Book TitleSwaroopsambhodhan Panchvinshati
Original Sutra AuthorBhattalankardev
AuthorSudip Jain
PublisherSudip Jain
Publication Year1995
Total Pages153
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Metaphysics
File Size3 MB
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