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________________ उत्थानिका (कन्नड़ टीका)-इन्तु कर्मगळ केडिंगे अन्तरोपायम पेन्दु बाह्योपायमं पेळल्वेदि बन्दुदुत्तरश्लोक उत्थानिका (संस्कृत टीका)-एवं मुक्तेर्मुख्यकारणं रत्नत्रयस्वरूपं निलप्य एतन्मुख्महेतोर्बाह्यसहकारिकारणं प्रवक्तुमाह यदेतन्मूलहेता: स्यात् कारणं सहकारकम् । तदबाह्यं देश-कालादिस्तपश्च बहिरङ्गकम् ।। 15।। कन्नड़ टीका-(स्यात्) अक्कुं (बाह्यम्) बाह्यकारणं, (किम्) आबुद्ध (?) (तत्) अदु, (तत्किम्) अदेम्बुदाबुदु? दिशकालादिः) द्रव्य-क्षेत्र-काल-भाबंगळु (न केवलमेतत्) केवलमिदेपेंचुदिल्ल (तपश्च) तपमुं (कथंभूतम्) एन्तप्पुद? (बहिरंगकम्) बाह्यरूपमप्युदु (यदेतत् किं भूतम्) आबुदोंदु देशकालादिमुं तपमुमेंतप्युद्ध (कारणं सहकारकम्) सहकारी कारणमप्पुदु (कस्य) आवुदक्के? (मूलहेतोः) मुख्यरत्नत्रयक्के । संस्कृत टीका-(मूलहेतोः) मोक्षस्य मुख्यकारणरत्नत्रयस्य (बाह्यम् यद्देशकालादि) कर्मक्षयकरणे उपयोगी यद्देश-काल-संहननादि, तद् (बहिरंगकम्) अनशनादि बाह्यमेतत्तपश्च, (सहकारकं कारणम्) सहकारि कारणं स्यात् । एवमुभयसामग्री बिनानन्तसुखस्वरूपप्रमोक्षप्राप्तिर्न स्यादिति भावार्थः । उत्थानिका (कन्नड़)-इस प्रकार से कर्मों के विनाश के लिए आन्तरिक उपाय बताने के बाद बाह्य उपायों को बताने के लिए यह आगे का इलोक आया है। उत्थानिका (संस्कृत)-इस प्रकार मोक्ष के मुख्यकारण रत्नत्रय का स्वरूप बताकर उस मुख्य (रत्नत्रय) के बाह्य सहकारी कारणों को बताने के लिए कहते हैं खण्डान्चय:--यदेतत् जो यह, मूलहेतो: (रत्नत्रयरूपी) मूलकारण का, सहकारकं कारणं सहकारी कारण, स्यात् होता है, तद्बाह्य-उसके अतिरिक्त, (यत्-जो) देशकालादि:-क्षेत्र-काल आदि (रूप कारणचतुष्टय) च और तपः (अनशनादिरूप बाह्य) तप भी, बहिरंगकम्=बहिरंग (कारण) हैं। ___ हिन्दी अनुवाद (कन्नड़ टीका)-होता है बहिरंग कारण, कौन? वह, वह कौन? द्रव्य-क्षेत्र-काल और भाव आदि । केवल इतना ही नहीं, तप भी (बहिरंग कारण होता है) किस प्रकार का तप (बहिरंग कारण होता है)? बाह्यरूप तप, जो यह देश-कालादि और तप है, वह कैसा होगा? सहकारी कारण बन सकेगा। किसका? मुख्य रत्नत्रय का। 45
SR No.090485
Book TitleSwaroopsambhodhan Panchvinshati
Original Sutra AuthorBhattalankardev
AuthorSudip Jain
PublisherSudip Jain
Publication Year1995
Total Pages153
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Metaphysics
File Size3 MB
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