________________ प्रतिपमा-नियागप्रतिपना / तपाविधन यच कर्याचदर्शयति-समि[समयं चरे' समका सामावरूप नासीपन्दनन्या | चरे-वनुतियेत् / सपा शन्तो द्रव्यभूतो पत्कृष्टकापश्च / एसद्गुणसमन्वितम निर्णय इति शायः // 5 // एवं चत्वारोऽयेकार्थास्तथा श्रीमुपास्वामी सम्पप्रमूतिसाधूनुदिश्येदमा से पवमेव जाणह जमइं भयंतारो ति बेमि / परमो सुयखंधो समत्तो / / व्याख्या-'से' इति वापस प्रमेय आनील यब, नान्या भासि विकरपा विधेया, यस्मादई सर्वज्ञाना। नयीमि, न च मशा भगवन्तो भयाातारो रामदेषामावादन्यथा हुदते, ततो मया यत् कथितं नमवैव प्रतिपत्तव्यम् / इतिः परिसमायथें, अधीमीति पूर्वत्र / पोडशे गायाध्ययनं समासम् (नत्ममाप्तौ प समासाऽयं गापापोरशारूपः प्रथमः शुनस्कन्धः।) * श्रीजिनदेवसूरीमा-मावेशेन चिरायुषा / उपजीव्य शत्ति, कस्वा नामान्तरं पुनः॥१॥ श्रीसाघुरोपाध्याय-तीयप दीपिका / संक्षेपलचिजीवानां हिताय सुस्वपोधिनी // 2 // [विभिषिकम।] लिलिखे वरवनामे, निषिनवशरैक(१५९९)वस्सरे (सौम्ये ) / कार्तिके (शिशुमे मासे, (सदर) तुर्मासकर्षमि | // इति श्रीपरममिहिनखरतरगच्छविभूषगाचार्यषर्पश्रीमशिनदेवकिशावर्तिपाठकप्रवरभीमरसाधुरा गणिवस्सहलिताया श्रीमानकतावदीपिकायां प्रथमः श्रुतस्कन्धः सम्पूर्णः / / وسطية بمداعبهمنممحينالحالهطه لسفليعبمسامعنا ماسالسعنا لعده المداعبه مهمانیها भन्mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm