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________________ सूक्तिमुक्तावली व्याख्या– यः पुमान् अदन्तं अविशीर्णं प्रस्तावात् परविशं किंचिद्वस्तु वा न गृह्णाति तं पुरुषं सिद्धिमुँतिर भिलषति बांच्छति पुनस्तं समृद्धिक्रिश्वादिसम्पद् घृणीते । तथा कीर्तिर्यश रतं अभिसरति प्रत्यागच्छति । भयातिः संसारपीठा तं मुंचते त्यजति । सम सुगतिर्देषमनुष्यरूपा तं स्पृहयति वाच्यति । सधा दुर्गतिर्न र कतिर्यक रूपा तं पुरुषं न पश्यति नेक्षते । विपद् आपद् तं परिहरति स्वजति सं कं यो अदन्त' न गृह्णाति ॥ ३३ ॥ ४६ अर्थ - जो पुरुष गिरा पड़ा भूला, रखा हुआ विना दिया पदार्थं स्वयं नहीं महण करता और न दूसरों को देता है उस पुरुष की मुक्ति भी अभिलाषा करती है। ऋद्धियां उसका वरण करती हैं कीर्ति उसके चारों ओर फैलती है, संसार को पीढ़ा उसे त्याग देवी है, उत्तमगति उसे चाहती है अर्थात् वह पुरुष मर कर उत्तम गति पाता है, दुर्गंसि उसे आँख उठा कर भी नहीं देखती, विपत्तियां उसके सिर पर मँडराती नहीं हैं। अदधत्यागका ऐसा माहारम्य जान कर उसका आचरण करना कल्याणकारी है । और भी कहते हैं भूयोप्यदत्तादानगुणानाह - शिखरिणी छन्दः असं नादखे कृतसुकृतकामः किमपि यः शुभश्रेणिस्तस्मिन्वसति कलहंसीव कमले । विपचस्माद्दूरे व्रजति रजनीदाम्बरम ये विनीतं विद्येव त्रिदिवशिवलक्ष्मीजति सं ||३४|०
SR No.090482
Book TitleSuktimuktavali
Original Sutra AuthorSomprabhacharya
AuthorAjitsagarsuri
PublisherShanti Vir Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages155
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size2 MB
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