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________________ सूक्तिमुक्तावली भय, या महान संकट भी शान्त हो जाता है, व्याघ्र ( बाघ ) सर्प को स्तंभन करने वाला है, कल्याण का वशीकरण है अर्यात कल्याण ... का गृह है, समृद्धि को पैदा करने वाला है, सज्जनता का जीवन है, कीर्ति का क्रीडावन है, प्रभाव का मन्दिर है, ऐसा पवित्र सत्यवचन निरन्तर बोलना योग्य है ।। २६ ॥ पुनरसत्यवचनस्य दोषानाह शिवरिणीछन्दः यशो यस्माद्भस्मीभवति वनवह रिव वनं । निदानं दुःखानां यदवनिरुहाणा जलमिव ।। न यत्र स्याच्छायाऽऽतप इव तपः संयमकथा । कथंचिचन्मिथ्यावचनमभिधते न मतिमान् ॥३०॥ व्याख्या-स मतिमान बुद्धिमान् पुमान् कचित् कष्ट पि सति तमिथ्यावचनं असत्यवचनं न अभिधत्ते न जल्पति । तत् किं रास्मान्मिथ्यावचनाद्यशः कीर्तिभस्मीभवति विनश्यति । कम्मास्कमिघ । वनबहीवाग्ने नमिव । यथा दावानलात् वनं भस्मीभवति तथा । पुनर्यन्मिभ्याषचनं दुःखानां निदानं कारणं। केषां किमिव अवनिरुहाणां वृक्षाणां जलमिव । यथा जलं धृक्षाणां कारणं तथा । पुनर्यत्र मिथ्यावचने सपः सयमकथा तपश्चारित्रयो तिपि न । कस्मिन् का इव । आतपे सूर्यातपे छाया इव । यया आतपे छाया न स्यात् तया || ३०॥ अर्थ-जिस असत्य वचन से यश इस प्रकार नष्ट हो जाता है जैसे चन की अग्नि ( दावानल ) से बन भरम हो जाता है। जो
SR No.090482
Book TitleSuktimuktavali
Original Sutra AuthorSomprabhacharya
AuthorAjitsagarsuri
PublisherShanti Vir Digambar Jain Sansthan
Publication Year
Total Pages155
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size2 MB
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