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सूक्तिमुक्तावली अर्य-खो भव्यात्मा श्रीअरहन्त बीसराग प्रभू को भाव . मक्ति से (घद प्रज्ञा पूर्वक ) पूजन करते हैं उनके जन्म जन्म के
संचित पापों का लोप ( नाश ) हो जाता है, दुर्गति का नाश होता है, धापत्तियां दूर हो जाती हैं, पुण्य का भण्डार भर आता है, इन्द्रादि पद की लक्ष्मी प्राप्त होती है, शरीर निरोग रहता है, सौभाग्य बढ़ता है, सबसे श्रीति बढ़ती है अर्थात उसे सब प्यार करते हैंसब चाहते हैं, संसार में उनकी कोति फैलती है, स्वों का निवास मिलता है और तो क्या 1 मुक्तिपद की भी प्राप्ति होती है। ) पुनः श्रीजिनपूजाफलमाह
शार्दूलविक्रीडितछन्दः स्वस्तस्य गृहांगणं सहचरी साम्राज्यलक्ष्मीः शुभा सौभाग्यादिगुणावलिविलसति स्वैरं वपुर्वेश्मनि | संसार: सुतरः शिवं करतलकोडे लुठल्यञ्जसा, या श्रद्धाभरभाजनं जिनपतेः पूर्जा विधचे जनः ॥१०॥
___ व्याख्या-यो जनः श्रद्धाभरभाजनं सन् श्रद्धा रुचिस्वस्याः भरः प्रचुरता तस्या भाजनं त्यानं माजनशब्दस्याऽजहल्लिंगत्वात नपुंसकत्वं शुभभावनायुक्तः सन् जिनपतेः श्रीवीतरागदेवस्य पूजा विघको करोति तस्य जनस्य स्वर्गो देवलोको गृहांगणं गृहत्यांगणयनिकटो भवति । पुनः शुभा मनोरमा साम्राज्यलक्ष्मी राज्यऋद्धिस्तस्थ सहपरी सावर्तिनी भवति । पुनर्वपुर्येश्मनि बपुरेव शरीरमेव वेश्म गृह तरिमन् सौभाग्यधैय्यौदार्थचातुर्यादिगुणानां भावलिः श्रेखि: