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सूक्तिमुक्तावली अर्थ- लक्ष्मी की उपमा व्यभिचारिणी खी से दी जाती है षद लक्ष्मी कैसी है:-लक्ष्मी नदी के समान सदा नीचे की ओर जाती है, नींद के समान चेतना को मछिन कर देती है, मदिरा के समान मद { अहंकार ) को बढ़ाती है अर्थात् लक्ष्मीचान होने के कारण प्रायः मनुष्य अहंकारी हो जाते हैं और अहंकार भाव के कारण दूसरों का अपमान करते हैं, अधिक धूम के समान अन्धा बना देती है ( अधिक धुणे के कारण दिखाई नहीं देता इसी प्रकार लक्ष्मीवान् व्यक्ति दूसरों को देखता हुआ नहीं देखता, नहीं गिनता ) बिजली के समान मनुष्य के हृदय में चंचलता लक्ष्मी के कारण बढ़ जाती है परिणाम में स्थिरता नहीं रहती, बन की दवाग्नि के समान तृष्णा बढाती है, व्यभिचारिणी स्त्री के समान स्वच्छन्द इच्छानुसार यत्र तत्र [ जहां कहां ] घूमती रहती है । धनस्य दोषानाह
शार्दूलविक्रीडित छन्दः दायादाः स्पृहयंति तस्करगणा मुष्णति भूमीभुनो। गृहन्ति छलमाकलय्य हुतभुग्भस्मीकरोति क्षणात् ।। अम्मः प्लावयते भितो विनिहितं यक्षा हस्ते हठात । दुईत्ता स्तनया नयंति निधनं धिग्बह्वधीनं धनं ॥७४||
व्याख्या-धनं द्रव्यं धिक अस्तु । धिम निर्मनिनिदयोः । किंभूतं वलधीनत्वं बहर इच्छंति । कथं दायादाः गोत्रिणः स्पृहयति गृहीतु वांछन्ति । पुनस्तस्कर पणाश्चौरसमहा मुष्णति चोरयति ।