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मुगादशमीकथा [गुजराती]
[१] पंच परम गुरु पंच परम गुरु प्रणमेसु सरस्वति स्वामी वलि विनन्यु। श्री सकलकीरति गुणसार भुवनकरति गुरु उपदेस्यु । करम्य राल निरभ सुगंधदमि कथा रूबड़ी । ब्रह्म जिनदास मणे सार भबियण जन संघीयया । जिम होइ पुण्य विस्तार जिम होइ पुण्य विस्तार ।।
[२] भास जसोधरनी जंबुव दीप मझारि सार भरत क्षेत्र ववाणी । कासिय देस छे रुवडो वानारसि नयर मुजाणौ ॥१॥ पदमनाभि तिनि नयरि राब गुणवंत अपार । जैन धरम फरै निरमली त्रिभुवन भवतार ॥२॥ श्रीमति गणी तेह तणी रूप तणी निधान । धर्म चिवेक बहु रूबदा मन माहि बहु मान ॥३॥ वसंत मास अति रूवडो आयो सचिशाल । वनसपती अति गहगही फलफूल गुणमाल ||४|| पदमनामि राजा रूवडी चाल्यौ गुणवंत । क्रीडा करवा निरमलो ते छै जयवंत ॥५॥ सयल सजनस्यु निरभरयो परिवार विशाल । गज वर स्थ बह पालखी तुरंगम गुणमाल ॥६॥ साम्ह मुनिवर भेटिया स्वामी गुणवंत । सुदर्शन नाम रूवडा संजम जयवंत ॥७॥ त्रा ज्ञान करि लंकरो चारिन चुडामनि । दुइ पाम्बडे" पारणौ करे सुखम्बानि ॥८॥ तिनि अबसर राजा हरपियो वंद्या गुरुचंग । रागिए परते इमि कहि राजा मनि रंग ॥९॥ तम्हे पाछा बलो सुंदरि मुनिवर गुणवंत । पारणी कराव्यो निरमलो भाव धरि जयवंत-|१०||
१. स प्रनमिणं, २. स स्तक, ३. उपस्यु, ४. स हूँ निरमलो, ५.स निरमली, ६. सब जं तस छोषवा, ७. श्रच जंबूद्वीप, म. पास . स विहु नडी ६. अ आल्यो से रूबडो तक का पाठ छूट गया है, १०. स गोवर । ११. बस पखवाडे, १२. स जग गुरु ।