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________________ ८२] [१५ सुगन्धदशमीकथा मन ही में दूखी अति घणी 1 आज्ञा मानि चली पतितणी । जाय कियो भोजन ततकार | आगै और सुणों भूपार ॥१५॥ मुनि भूपतिके ही घर गयो । राणी अशन महानिंद दयौ । कड़ी तूंबडीको जु अहार । दियो मुनीश्वर कुँ दुःखकार ॥१६|| भोजन करि चाले मुनिराय । मारग माँ हिं गहल अति आय । परयो भूमिपर तब मुनिराज । कियो श्रावकाँ देखि इलाज ॥१॥ सैठे एक जिनालय सार । तहाँ लइ गये करि उपचार । फेरि सकल ऐसे वच चयो । राणी खोटो भोलन दयो ।।१४॥ तात मुणी महा दुःख पाय । सून्य हो गये हैं अधिकाय । धिक-धिक है ताको अति घणो । दुष्ट स्वभाव अधिक जा तणो ॥१९॥ तब ही बन सो आयो राय | सुनी बात राजा दुःख पाय । राणी सों खोटे बच कहे । वस्त्राभरण खोसि कर लये ॥२०॥ काहि दई घर बाहरि जबै । दुःखी भई अति ही सो तबै । कुष्टातुर है आरत किंयो । प्राण छोरि महियी तन लियो ॥२१॥ याकी मात भैसि मर गई । तब यह अति दुर्बलता लई । एक समय कर्दम मधि जाय । मग्न भई नामा दुःख पाय ॥२२॥ तहाँ थकी देख्यो मुनि कोय । सींग हलाये क्रोधित होय । तब ही पंक विषं गड़ि गई । प्राण छोडि खरणी उपजई ॥२३॥ भई पंगुरी पिछले पाय । तब ही एक मुनीश्वर आय । पूरब वैर सु मन में ठयो । तहाँ कलुष परिणाम जु भयो ॥२४॥ दोहा—कियो क्रोध मनमें घयूँ दई दुलाती जाय । प्राण छोरि निज पाप तें लई शूकरी काय ॥२५॥ श्वानादिकके दुःख तें भूखी प्यासी होय ।। मरि चंडालोके सुता उपजी निंदित सोय ॥२६॥ चौपई-गर्भ आयताँ विनस्यो तात । ऊपजताँ तन त्यागो मात ॥ पालै सुजन मरै फुनि सोय । अरु आवत तनमें बदवोय ॥२७॥ इक जोजन लौं आवे बास । ताहि थकी आवै नहिं स्वास ॥ पंच अभख फल खायो करै । ऐसी विधि वनमें सो फिरै ॥२८॥ तहाँ एक मुनि सिख जुत देख । राग द्वेष तजि शुद्ध विशेष ॥ सा वनमें आये गुण भरे । लघु मुनि गुरु सों परशन करे ॥२९॥ वास निंद्य आवै अधिकाय । स्वामी कारण मोहि बताय.।। मुनि भाषं सुणि मन वच काय । जो प्राणी ऋषिकौं दुखदाय ॥३०॥ सो नाना दुख पावै सही । मुनि-निन्दा सम अघ कोइ नहीं ॥ कन्या इनि पूरब भव माहिं । मुनी दुखायो थो अधिकाहिं ॥३१॥
SR No.090481
Book TitleSugandhdashmi Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1966
Total Pages185
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Biography
File Size5 MB
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