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सुकपायमलातिगम् । शुद्धस्फटिकसंकाशं शुक्लध्यानं तदुच्यते ||७|| पृथम्बितर्कवीचारं शुक्लभ्यानं तदादिमम् । तदेकत्वं fear हि बीचारपरिवर्जितम् || || शुक्लध्यानं द्वितीयं तु योगिनां शुद्धचेतसाम् । सूक्ष्मक्रियाप्रतिपातिष्यानं तृतीयभेदम् ||३|| कियाविरहितं ध्यानं शुल्कं तुयं भवेदिद्द। शुक्लध्यानस्य भेदा हि चत्वारः सन्ति चागमे ॥ १०॥ द्वादशाङ्गधरार्णा स्तः भ्भावश्रुतात्मनां खलु । श्रये शुक्ले च ते ध्याने कषायरहितात्मनाम् ॥ ११॥ अन्त्ये शुक्ले परं श्रेष्ठे केवलज्ञानचषाम् । सर्वथा वीतरागणां स्तो द्व े चात्र विकल्मवाम् ||१२|| श्रुतज्ञानस्य सम्बन्धाद् द्व े स्तः छच्नस्थ योगिनाम् । निःशेषालम्बनाभावाद द्वे स्तः केवलिनोऽत्र का ||१३|| त्रियोगेन च तत्रापि धायं शुक्लं मतं जिनैः । द्वितीयमेकयोगेन तृतीयं ननु योगिनाम् ||१४|| अयोगिनां तु तु स्यादुपचारेण वात्र च । इति क्रमेण शुक्लं द्दि ध्यानं स्थाच्च चतुर्विधम ||१५|| बितर्कस्य पृथक्त्वम्य वीचारसहितेन वा । तद्ध्यानमस्ति चौचारः सपृथक्त्वं वितर्ककम् ||१६|| वितर्कस्य च
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कहते हैं ||५-- उस क्लव्यानके बार मेद हैं--- पहला प्रभाव वितर्क वीचार नामका शुक्लध्यान है। शुद्धचित्तको धारण करनेवाले योगियोंके होनेवाला, वीचाररहित एकत्व वितर्क नामका दूसरा शुक्लाध्यान है । सूक्ष्म क्रियाप्रतिपाती नामका तीसरा शुक्लध्यान है और क्रियारहित व्युपरतक्रिया निवृत्ति नामका चौथा शुक्लध्यान है । इस प्रकार शुक्लध्यानके चार भेद हैं ।।८ - १० ।। जो मुनि मात्र श्रुतको धारण करनेवाले द्वादशांग पाठी हैं और कषायरहित हैं, उनके पहले और दूसरे दोनों शुक्लध्यान होते हैं ||११|| तथा अंतके दोनों ध्यान सर्वोत्कृष्ट हैं और पापरहित परम वीतराग केवल ज्ञानियोंके होते हैं ||१२|| पहले दूसरे दोनों शुक्लध्यान श्रुतज्ञानके आलंबनसे होते हैं, इसलिये ये दोनों ही ध्यान छद्मस्थ योगियों के ही होते हैं तथा अन्तके दोनों शुक्लध्यान समस्त आलंबनोंके अभावसे होते हैं, इसलिये वे केवल ज्ञानियों के ही होते हैं ॥ १३ ॥ पहला पृथक्त्वत्रितर्क नामका शुक्लध्यान तीनों योगोंसे होता है, दूसरा एकत्र-वितर्क नामका शुक्लध्यान किसी एक योगसे होता है, सूक्ष्म क्रिया प्रतिपाती नामका तीसरा शुक्लध्यान काययोगसे होता है, और व्युपरत क्रिया निवृति नामका चौथा शुक्लध्यान अयोगियोंके होता है । इस प्रकार शुक्लध्यानके चार मेद अनुक्रमसे होते हैं। ।।१४-१५।। जिस ध्यानमें पृथक्त्व, वितर्क और वीचार तीनों हो उस ध्यानको सवीचार पृथक्त्व वितर्क कहते हैं । यह पहला अक्लध्यान है ||१६|| जिस ध्यानमें चितर्क हो, परंतु वीचार न हो उसको अवीचार एकत्व-वितर्क
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