________________
चतुर्विंशतितमोऽधिकारः
महाध्यानी महाझानो सौम्यमूतिर्महाप्रमुः। वंद्यतेऽसौ गहादेवः पार्श्वनाथो जिनेश्वरः ॥१॥ श्रीसिद्ध परमात्मान निष्कलङ्कममूर्तकम् । ईश्वरं च चिदानन्दं वन्देऽई सद्गुणातय ॥२॥ सर्वथा मूर्तिमास्नकर्माभावे प्रमूर्तता । येषामस्ति | सुसिद्धानां रूपाठीतास्ततो हि ते ॥३॥ येषांहि कर्मश सत्ता स्पयुक्ता च विद्यते । ते हि मूर्ताः सरूपाश्च सशरीरा मरन्ति वा III येषां तु नास्ति सा सत्ता रूपालोताततो हि ते। अतो ध्यानं हि सिद्धानां रूगतीतं मतं जिनैः ॥शा विशुद्धानां सुसद्वाना बुद्धाना इसकर्मणाम् । ध्यानं हि तेषां पृष्यान! रूपातीतं मतं जिनैः ॥६।। सर्वरूपविहीनानां सर्वकर्मक्षयात्मनान् । अदेहानां विशुद्धानामनशाना सुखात्मनाम् ॥ निहारे च सर्वसामाचिस्मना । यत्र सिद्धानां
___ जो महाध्यानी हैं, महाज्ञानी हैं. सौम्य मूर्ति हैं, महाप्रभु है और महादेव हैं (सर्वोत्कृष्ट देव हैं); ऐसे जिनेन्द्रदेव भगवान् पार्श्वनाथको मैं नमस्कार करता हूं ॥१॥ जो निष्कलंक है, अमृत हैं, ईश्वर हैं, चिदानन्दमय हैं और परमात्मा हैं; ऐसे सिद्ध परमेष्ठीको मैं उनके गुण प्राप्त करने के लिये नमस्कार करता हूं ॥२॥ कर्म पब मूर्त हैं, उन सब कर्मोका अभाव होनेसे सिद्धों में अमृतता स्वयं सिद्ध है; इसीलिये सिद्ध भगवान् रूपातीत वा रूपरहित कहलाते हैं ॥३॥ जिन जीवोंके रूपरहित कर्मोंकी सत्ता है, उनको सरूपी और मत कहते हैं। ऐसे जीव शरीर सहित ही होते हैं ॥४॥ जिन जीवोंके वह रूपमती कर्मों की सत्ता नहीं है, ऐसे सिद्धों को रूपातीत कहते हैं |
इसीलिये सिद्धोंके ध्यानको रूपातीत कहते हैं ||५|| जो सिद्ध परमेष्ठी अत्यन्त विशुद्ध हैं, समस्त कासे हा रहित हैं और पूज्य है; ऐसे सिद्धों का ध्यान करना रूपातीत ध्यान कहलाता है ॥६॥ भगवान् सिद्ध परमेष्ठी | सब तरहके रूप रस गन्ध स्पर्शोसे रहित हैं, समस्त कर्मोंसे रहित है, शरीरसे रहित हैं, विशुद्ध हैं. इन्द्रियसे रहित
॥