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सु० प्र०
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सर्वमंत्रेषु मूलं हि मंत्रराजं सुरार्चितम् । योगिभिश्च सदा वन्य' लोकोत्तरं जगन्नुतम् ॥। २६ ।। सर्वसिद्धिकरं श्रेष्ठं सर्वविघ्नविनाशकम् | महामङ्गलदातारं सर्वपापप्रणाशकम् ॥ २७॥ श्रनादिनिधनं सिद्धमपराजित संज्ञकम्। स्वर्गापवर्गदं कामं सर्वाभीष्टप्रदायकम् ||२८||ध्यातव्यं योगिभिर्नित्यं भवदुःखस्य दानये | शाकिनी भूतवे वाला नश्यन्ति राक्षसाः स्वयम् :: २६|| आकाशगामिनी विद्या अञ्जनवत्प्रसिद्ध्यति । पञ्चत्रिंशत्पदोपेतं परमेष्ठिस्वरूपकम् ॥३०॥ णमोकार महामंत्रं प्रत्यक्षफलदायकम् । अजः सर्पयुगंः श्वा वा नकुली वानरस्तथा ||३१|| णमोकारस्य माहात्म्यात् जाता वृन्दारकाः खलु । सम्यग्दृष्टिस्तु तद्धषानान्मोक्षं च लभते परम् ||३२|| यमोंकारस्य माहात्म्यं गणेशो वक्तुमक्षमः । तीर्थंकरे जिनेन्द्रैश्व ध्यातं तन्मंत्रराजकम् ||३३|| ये ये पुरा गदा मोक्षं गमिष्यति च योगिनः । मंत्रराजणमोकार महात्म्यं तद्धि बुद्धयताम् ||३४|| श्वासोच्चकासप्र
समस्त मंत्रोंका मूल मंत्र णमोकार मंत्र है, यह मंत्र देवों के द्वारा पूज्य है, योगियोंके द्वारा वन्दनीय है, लोकोत्तर है और जगत् के द्वारा नमस्कार करने योग्य है । यह मंत्र समस्त सिद्धियोंको करने वाला है, बेष्ट है, समस्त विघ्नों को नाश करनेवाला है, महामंगल देनेवाला है, सब पापको नाश करनेवाला है, अनादिनिधन है, सिद्ध है और अपराजित इसका नाम है। यह मंत्र स्वर्ग -मोक्षको देनेवाला हैं, इच्छाओं पूर्ण करनेवाला है और समस्त अभीष्टों को पूर्ण करनेवाला है || २६ - २८ ॥ संसारके दुःखोंको नाश करनेके लिये योगियोंको सदा इसका ध्यान करना चाहिये । इसके ध्यान करनेसे शाकिनी, भूत, वेताल और राक्षम आदि सब नष्ट हो जाते हैं, अंजनवोरके समान आकाशगामिनी विद्या सिद्ध हो जाती है। यह पैंतीस अक्षरका णमोकार महामंत्र पंच परमेष्टीस्वरूप हैं और प्रत्यक्ष फल देनेवाला है । बकरा, सर्प-सर्पिणी, कुत्ता, न्यौला, बानर आदि बहुतसे जीव इस णमोकार मंत्रके ही माहात्म्य से स्वर्ग में जाकर देव हुए हैं। सम्यग्दृष्टि पुरुष इस महामंत्रके ध्यानसे अवश्य ही मोक्षको प्राप्त होते हैं ।। २९-३२ || इस णमोकार मंत्र के माहात्म्यको गणधरदेव भी कहने में समर्थ नहीं हैं, तीर्थकर जिनेन्द्रदेवने भी इस मंत्रराजका अवश्य ध्यान किया है ॥ ३३॥ जो जो योगी पहले मोक्ष गये हैं, वा आगे जायेंगे, वह उनका मोक्ष जाना णमोकार महामंत्रका ही माहात्म्य समझना चाहिये ॥३४॥ भव्य जीवोंको भक्तिपूर्वक, श्रद्धापूर्वक, शुद्धतापूर्वक, शुद्धभावोंसे विधिपूर्वक श्वासो
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