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II मुदयादिह । कानि कानि व दुःखानि जीवो न सहते चिरम् ।।३७॥ कर्मतंत्रात्पराधीनः बंदीव किं करोति न । सर्वत्र च |
त्रिलोकेषु कर्मोदयोऽतिदुर्द्धरः ॥३८॥ ते निरोद्धन कोऽपीह समर्थो बलवान् शमः । ध्यानतपोऽग्निना कर्मोदयः स हि ०प्र०
यिनश्यते ॥३॥ कर्माधीनतया जीवो दुःखं सहेत यानशा । तारशं कर्मनाशार्थ स्वतंत्रेण महेत वा ॥४०॥ तपोध्याना१५|| दिभिश्चात्र स्वल्पं कालं सुभावतः। स निर्जरामरो भूत्वा स्वतंत्रो जायते स्वयम् ।।११।। यदि कर्म निरोद्धतच्नेच्छा
ते वरिवर्ति षा । आत्मन् त्वं कुरु सयानं कर्मविपाकजं शुभम् ।।४२|| कर्मणामुदयस्ता योगीगत्यादिभेदतः । चिन्तयेत्कर्म नोकर्म भावकर्म पुनः पुनः ॥४॥ विपाकचिन्तनेनात्र योगी जानाति कर्मणाम् । संसृती द्रव्यपर्यायभेदं गवागत तथा ।। ।। तनात्र चिन्तनेनैव निर्वेदो जायते परम् । भवभोगावदेहेभ्यो विरतिजायते परा ॥४५॥ ततो हि कर्मनाशार्थ यत्न करोति भावतः । थ्यानं विपाक कृत्वा शिवं याति सुनिश्चितम् ।।४।। यद्यपि शुद्धरूपोऽहं. तथापि कर्नपाकतः । अनादितो दुःखोंको चिरकाल तक सहन नहीं करता अर्थात् समस्त दुःखोंको सहन करता रहता है ॥३७॥ कर्मोके । उदयसे पराधीन हुआ यह जीव तीनों लोकोमें सब जगह कैदीके समान क्या क्या कार्य नहीं करता है अर्थात । सब कुछ करता है। यह कोंका उदय अत्यन्त दर्धर है ॥३८॥ उम कर्म के उदयको रोकनेके लिये कोई भी बलवान् समर्थ नहीं है। यह काँका उदय ध्यान और तपश्चरणरूपी अग्निसे ही नष्ट किया जा सकता है।
॥३९॥ यह जीव कर्मों के आधीन होकर जैसे दुःखोंको सहन करता है, वैसे दुःख कर्मोंके नाश करनेके लिये | स्वतन्त्र होकर तप वा ध्यान आदिके द्वारा निर्मल परिणामोंसे थोड़े काल तक भी सहन कर ले तो अजर अमर होकर यह जीव सदाके लिये स्वतन्त्र हो जाय । हे आत्मन् ! यदि उन कर्मोंके उदयको रोकनेकी तेरी इच्छा है तो तू कर्मोंके विपाकको चितवन करनेवाला विपाकविषय नामके धर्मध्यानको धारण कर ॥४०-४१॥ योगियोंको गति आदिके भेदसे कर्मों के उदयका चिंतन करना चाहिये। और कर्म नोकर्म और भावकर्मीका चितवन करना चाहिये, कर्मोके उदयका चिंतन करनेसे योगियों को संसारमें होनेवाले द्रव्यपर्यायके भेद तथा कर्मों का आत्रक, संवर, निर्जरा
आदि सबका ज्ञान हो जाता है । इन सपका चिंतन करनेसे उत्कृष्ट वैगम्य उत्पन्न होता है और संसार, शरीर, | मोग तथा इन्द्रिोंके विषयोंसे उत्कृष्ट वैराग्य उत्पन्न होता है । इसलिये जो जीव कर्मोका नाश करने के लिये निर्मल | परिणामोंसे प्रयत्न करता है । इस विपाकविचय नामके धर्मभ्यानको धारणकर कोंके नाश करने का प्रयत्न करता