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विविधा शुभा ।।४७|| शुद्धि विना क्रियाः सर्वा विफलाः श्रममात्रकाः। तस्मात्सर्वप्रयत्नेन शुद्धिः कार्या निरन्तरम् ॥४|| द्रव्यक्षेत्रादिकानां च शुद्धिं कुस्वा प्रयत्नतः। तया भाव विशुद्धिः स्याजिनाज्ञापालनं भवेत् || बाह्याभ्यन्तरशुद्धिं च कृत्वा मंत्रजलादिना । सर्वसँग च भावना त्यक्त्वा ध्यान समाचरेत् ॥५०॥ अन्तःशुद्धिस्तु भव्यानां ध्याने किल्बिषनराशिका। भावशुद्धिकरी चास्ति वात्मवीर्यप्रवद्धिका ॥५१॥ बाशुद्धिस्तु सर्वत्र सर्वसिद्धिप्रदायिका । मूला हि सर्वसिद्धीना चागमाज्ञा प्रमाणतः ॥५२॥ यदा यदा ह्यविक्षिप्त मुश्चित्तं भवेत्तराम् । तदा तदा हि शुद्धि तां प्रकुर्यात शुद्धभावतः ॥शा | ततो मनोविशुद्धयर्थं कुर्वन्तु साधयोऽमलाम् । बाह्याभ्यन्तरशुद्धिं सां भावशुद्धिविधायिकाम ||५|| विजने वा जनाकी सुस्थिते दुःस्थितेऽथवा। समाधौ स्थिरचित्तेन ध्यानं कुर्वन्तु साधवः ॥५५| निद्रां तन्द्रां तथालस्यं प्रमादानादरं
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| प्रकारके स्थान और आसन तथा अनेक प्रकारकी शुभ शुद्धि, ये सब ध्यानकी सिद्धि के कारण हैं। बुद्धिमानोंको
इन सबका अभ्यास करना चाहिये ॥४७॥ बिना शुद्धिके समस्त क्रियायें निष्फल तथा केवल परिश्रमरूप है, | इसलिये साधुओंको अपने समस्त प्रयत्नोंसे निरंतर शुद्धि करते रहना चाहिये ॥४८॥ मुनियोंको प्रयत्नपूर्वक द्रव्य, 1K
क्षेत्र और काल आदिकी शुद्धि रखनी चाहिये, क्योंकि इनकी शुद्धिसे ही भावोंकी शुद्धि होती है और भगवान् जिनेंद्र | देवकी आज्ञाका पालन होता है ॥४९॥ जलशुद्धि वा मंत्रशुद्धिसे बाय-आभ्यंतरकी शुद्धि करके तथा | भावपूर्वक समस्त परिग्रहोंका त्याग करके ध्यान धारण करना चाहिये ॥५०॥ भव्य जीवोंके द्वारा ध्यानके समय की हुई अंतरंग शुद्धि पापोंका नाश करनेवाली है, मानोंको शुद्ध करनेवाली है और आत्माकी शक्तिको बढ़ानेवाली है ॥५१॥ तथा बाह्यशुद्धि सब जगह समस्त सिद्धियोंको करनेवाली है और आगमकी आज्ञाके अनुसार समस्त सिद्धियोंका मूल कारण हैं ॥५२।। मुनियोंका हृदय जब जब निश्चल हो तब तब शुद्ध भावोसे शुद्धि कर लेनी चाहिये ॥५३॥ इसलिये साधुओंको अपना मन शुद्ध करनेके लिये भावशुद्धिको उत्पन्न | करनेवाली निर्मल बास-आभ्यंतर शुद्धि अवश्य कर लेनी चाहिये ॥५४॥ साधुलोगोंको निर्जन स्थानमें वा मनुष्योंसे भरे हुए स्थानमें, सुलभ वा कठिन आसनमें, समाधिके समय स्थिर चित्त होकर ध्यान करना चाहिये १॥५५॥ ध्यानके समय निद्रा, तन्द्रा, आलस्य, प्रमाद, अनादर, विस्मरण, भय, क्रोध और मान आदि सबका
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