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सुन्दरम् । हीनसंहननादत्र मनः स्खलाते संततम् ॥१६।। तश्चित्तं न समायाति स्थैयरूपं हि कष्टतः ।।
भा नाद्धर्मध्यानमात्रं भवेदिह ॥१०॥ एष कालप्रभावोऽयं दुर्निवारो मतो जिगैः । अत एवाधुना लोके नोक्षसिद्धिर्न जायते ॥१॥ ऐदंयुगीनसाधूनां सम्यग्दर्शनशोभिनाम् । अत्यल्पवीर्ययुक्तानां ध्यानं स्यानिरुपद्रवे ॥१॥ प्रामादौ पत्तने वापि चैत्यालयमनोहरे । सुरक्षिते भवेद्ध्याने सर्वशंकाविवर्जित ।।२०|| सर्वासनं तथा सर्वस्थानं ध्यानस्य सिद्धये । भवति पत्रकायानां नाल्पवीर्यात्मनो मतम् ॥२१॥ बत्रकाया महाधीराः सर्वतो भन्यजिताः 1 जिनकल्पसमापन्ना नरमांगाः सुरातनः ॥२२॥ सर्वस्थानं मतं तेपामासनं विविध तथा । सर्वत्र सर्वभावेन स्वतंत्राः सिंहवृत्तयः १२३॥ तेशं जिनागमे नैव स्थानस्य वा नियंत्रणम् । उपसगैमहाघोरवदानवकल्पिः ॥२४॥ स्खलति न मनाक चित्तमुपद्रवशतैरपि। येषां तेषां न वा स्थान नियतं हि जिनागमे ॥२१॥ इन्द्रोऽपि च न शक्तोऽस्ति विभेत्तु निश्चलं सदा स्खलित होता रहता है ।१६॥ हीन संहनन होने के कारण यह चित्त बड़े कष्टसे भी स्थिर नहीं होता।
इसलिये इन कालमें केवल धर्मध्यान ही हो सकता है॥१७॥ रह कालका ही प्रभाव है । और भगवान जिनेन्द्र | त देवने इस कालको दुर्निवार यतलाया है, इसीलिये इस कालमें मोक्षकी सिद्धि नहीं होती है ॥१८॥ सम्यग्दर्शनसे || N) सुशोभित होनेवाले इस युगके साधु बहुत ही अल्प शक्तिको धारण करनेवाले होते हैं, इसलिये इस कालमें | | उपद्रवरहित स्थानमें ही ध्यान हो सकता है ॥१९॥ जो गांव, नगर वा चैत्यालय मनोहर है, सुरक्षित है,
और समस्त शंकाओंसे रहित है; से ही स्थानोंमें इस कालमें ध्यान हो सकता है ।।२०॥ जिनका शरीर वन| वृषभ नाराचमय है, उनको सब आसनोंसे और समस्त स्थानों में ध्यानकी सिद्धि हो सकती है। परंतु अल्प JA
शक्ति धारण करनेवालोंको नहीं ॥२१॥ वनमय शरीरको धारण करवाले महाधीर और वीर होते हैं, सब | तरहसे भयरहित होते हैं, जिनकल्प लिंगको धारण करते हैं और श्रेष्ठ कालके अनुसार चरम शरीरको धारग करनेवाले होते हैं । ऐसे मुनियों के लिये सब स्थान और अनेक प्रकारके आसन माने गये हैं । ऐसे मुनि सब स्थानोंमें और सब तरह के परिणामोंसे स्वतन्त्र होते हैं और सिंहवृत्तिको धारण करनेवाले निर्भय होते हैं ॥२२-२३।। जैनशास्त्रोंमें ऐसे मुनियों के लिये स्थानका नियन्त्रण कुछ नहीं है । जिनका हृदय देव-दानवों के
॥१२६॥ | द्वारा किये हुए महाघोर उपसर्गों तथा सैकड़ों उपद्रयोंसे भी कभी स्खलित नहीं होता, उनके ध्यानके लिये