________________
A
। १०३।।
R RRRRRRASSAIRSCORE
वेदिनाम् । सर्वे जीवा हि सन्तीह पात्मतुल्याश्य बान्धवाः ॥३॥ न कोपि कस्यचिन्मित्रं न वैरी न च दुस्खदः । बांधवाः बारया सर्वे भवन्त्येते स्वकर्मणा ॥३॥ योऽधुना हन्ति मां कोपास मया प्राग्भवे हतः । तस्मादस्यापराधो न चैषं को वशं नयेत् ॥३॥ तथापि कुरुते मो हि स्वस्थं कृतापराधकम् । भवान्तरमबद्धन दुष्टारमना कुकर्मणा ॥४०॥ प्राग्भवे यत्कृतं कर्म तन्मया भुज्यतेऽधुना 1 कोपस्य सत्र का वार्ता कोपेन किं प्रयोजनम् ॥४१॥ कदाचित्कोपि कोपेन मा इन्ति कर्मपाकतः। धर्मों में न हतोऽनेन रक्षामि क्षमया हि सम् ॥४२॥ पण्डकोपानलाकछीनं मां क्षमा रचति स्वयम् । बोधाम्बुदस्य धाराभिः परां शांति प्रदास्यति ।।४॥ संसारे दुर्लभो बोधः शमता दुर्लभा ततः । ज्ञमातिदुर्लमा तत्र यया क्रोधोपि शाम्यति ॥४॥ हन्तुकामैर्य दुष्टेर्विकारं नाप्यते मनः। योगिनां सा क्षमा श्लाच्या इन्द्रनागेन्द्र वंदिता | उपसर्गशतैस्तेषां परीषहभटैः शतैः । क्षमाभृतस्य पानेन विकार याति नो मनः ॥४६॥ एका जीव उनके आत्माके ही समान भाई है ॥३७॥ इस संसारमें न तो कोई किसीका मित्र है, न कोई किसीका दुःख देनेवाला शत्रु है, शत्रु और मित्र सब अपने अपने कर्मके अनुसार होते हैं ॥३८॥ इस समय जो हो । कोषपूर्वक मारता है, उसे मैंने पहले किसी भवमें अवश्य मारा होगा। इसलिये इस समय इसका कोई अपराध नहीं है । इस प्रकार विधारकर अपने क्रोधको शांत करना चाहिये ।।३९॥ मैंने परभवमें दुष्ट अशुभ कर्मोको | बांधकर जो अपराध किया था, उसके उदयसे मुझे मारकर यह मेरे अपराधको दूर कर रहा है । क्योंकि | पहले भवमें जो मैंने किया है, उसीको मैं भोग रहा हूँ। फिर उसमें कोध करनेकी क्या बात है और कोषसे । लाभ ही क्या है ? ॥४०-४१॥ कदाचित् कर्मके उदयसे कोई कोधकर मुझे मारता है, तो भी मेरे धर्मका | | पात तो नहीं करता । अब मैं क्षमा धारणकर अपने धर्मकी अवश्य रक्षा करूँगा ॥४२॥ यह क्षमा प्रचंड है कोधरूपी अम्निसे शीघ्र ही मेरी रक्षा करेगी और सम्यग्ज्ञानरूपी मेषधारासे उस कोधरूपी अग्निको परम # शांत कर देगी ॥४३॥ इस संसारमें सम्यग्ज्ञान दुर्लभ है, उससे भी दुर्लभ शमता वा शांत परिणाम है और | उससे भी दुर्लभ क्षमा है । क्योंकि इस क्षमासे कोध भी शांत हो जाता है ॥४४॥ जब मारने की इच्छा | करनेवाले दृष्टोंसे मनमें कोई विकार उत्पन्न नहीं हो सकता, वह इन्द्र नागेन्द्रके द्वारा चन्दनाय || | योगियोंकी क्षमा कहलाती है ॥४५॥ क्षमारूपी अमृतको पीकर उन योगियोंका मन सैकड़ों उपसोंसे तथा