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चारण मुनि देखे । शीतकाल में सुधार के गिरने पर शिलातल पर स्थित हो, बिना आच्छादन के कैसे रात्रि व्यतीत करेंगे, ऐसा सोचकर घर जाकर पश्चिम रात्रि में भैस को लेकर शीघ्र गया । उन मुनि को समाधिस्थ देखकर शरीर पर हुए तुषार को तितर-बितर कर हाथ पैर आदि का मर्दन किया।
सूर्योदय होने पर ध्यान समेट कर ( मुनि ने ) यह आसन्नभव्य है, ऐसा मानकर णमो अरहंताणं, इत्यादि मन्त्र कहा। उस मन्त्र का उच्चारण कर भगवान् आकाश ( मार्ग ) में चले गए। मन्त्र के ऊपर उसकी बहुत सा हो गई, मतः समस्त क्रियाको के प्रारम्भ में उस मन्त्र का उच्चारण करने लगा । सेठ में यह क्या उपद्रव करते हो, इस प्रकार रोका । उस ग्वाले ने जब पूर्व वृत्तान्त कहा तो सेठ ने कहा- तुम्ही धन्य हो, जिसने उनके चरणों के दर्शन किये । इस प्रकार एक बार गला पाकर ( उसकी ) बे भैसे एक प्रकार की फसल के खेत ( वल्ल क्षेत्र ) में भक्षण के लिए कली गई। उन्हें रोकने को उत्सुक उस साले ने नमस्कार मन्त्र का उच्चारण कर जल के बीच छलांग लगाई । अदृश्य लकड़ी उसके पेट में घुस गई । निदान से मर कर यह अहंददास की सेठानी का सुदर्शन नामक पुत्र हुआ । अतिरूपवान् तथा समस्त विद्याओं से युक्त उसने सागरसेना और सागरदत्त की पुत्री मनोरमा को विवाहा । एक बार वृषभदास सेठ सुदर्शन को अपने पद पर अधिष्ठित कर समाधिगुप्त मुनि के समीप हो गया।
राजा मे सुवर्शन का सम्मान किया, यह समस्त लोगों में प्रसिद्ध हो गया। एक बार राजा के साथ बड़ी विभूति से उद्यान क्रीड़ा के लिए आए । अभयमती रानी ने देखा । विजलीभूत होकर बाय से पूछा-यह कौन है ? उसने कहायह राजश्रेष्ठी सुदर्शन है । पुनः रानी ने कहा-यदि इसे मुझसे मिलाओ तो जीवन धारण करूंगी, अन्यथा मर जाऊँगी। घाय ने अवश्य मिलाऊँगी, इस प्रकार धैर्य बंघाकर रानी को घर लाई तथा कुम्हार के पास जाकर पुरुष प्रमाण मिट्टी का पुतला बनवाया । वस्त्र से वेष्टितकर रानी के समीप ले जाकर जाती हुई उसे द्वारपालों ने रोक लिया । कृटिलतापूर्वक पुतले को फेंककर टूटा हुआ देखकर घाय ने द्वारपालों से कहा-रानी पुरुष अनुष्ठान करती है, भूखो आज इसकी पूजा करायगी। इसे आप लोगों ने तोड़ दिया, अतः आप सभी को प्रातःकाल मरवा डालूंगी। अनन्तर भयभीत होकर उन्होंने कहा-क्षमा करो। कोई कभी तुम्हें नहीं रोकेगा । इस प्रकार द्वार के रक्षकों को नियन्त्रित कर अष्टमी को आधी रात के समय कामोत्सर्ग पूर्वक स्थित सुदर्शन को लाकर रानी' को समर्पित कर दिया । आलिङ्गनादि विज्ञानों से वह क्षुब्ध नहीं कर सकी। उपसर्ग का निवारण हो जाने पर प्रातःकाल पाणिपात्र में आहार कर गा, इस प्रकार