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________________ २१३ द्वादशोऽधिकारः अर्हन्त, सिद्ध, आचार्य (गणीन्द्र ), पाठक ( उपाध्याय ) और मुनिश्री ( साधु ) नित्य शुभतर ये परमेष्ठी संसार से पार करने वाले हैं। ये भन्यों को निमंल, विनाशरहित सुख करें, जिनका मन्त्र भी वाञ्छित सुख, कीति, प्रमोद और जय करता है ।। ४५ ।। मेरे कवित्व का लेश होने पर यहाँ समस्त लोगों की एकमात्र नेत्र, जिनेन्द्रमुख से उत्पन्न श्री शारदा माता जिस प्रकार बालक को सुखकर है, उस प्रकार सुख करें ।। ४६ ।। श्री मूलसंघ में, श्रेष्ठ भारतीय गच्छ में, अत्यन्त रम्य बलात्कार गण में श्री कुन्दकुन्द नामक मुनीन्द्र के वंश में प्रभाचन्द्र नामक महामुनीन्द्र हुए 11 ४७ ।। उस पट्ट पर तीनों लोकों के हितकारी, गुणरत्नों के समुद्र, भव्य कमलों के सूर्य मुनि पद्मनन्दी भट्टारक यतीश सज्जनों का सार रूप सुख करें ।। ४८|| उनके पट्ट पर कमलों के समूह के लिए सूर्य के समान मुनि चक्रवर्ती देवेन्द्रकीर्ति हुए। उनके चरणकमलों में भक्ति से युक्त विद्यानन्दी ने यह चरित बनाया ।। ४९ ॥ उनके पाद पट्टपर चारित्रचूडामणि, संसाररूपी समुद्र को तारने में एकमात्र चतुर, प्राणियों के चिन्तामणि मल्लिभूषण गुरु उत्पन्न हुए॥ गुणों की निधि सुरिश्री श्रुतसागर, श्री सिंहनन्दी गुरु ये समस्त शुभतर यति श्रेष्ठ आपका मङ्गल करें ॥ ५० ।। ____ गुरुओं के उपदेश से यह शुभ, सुख देनेवाला सच्चरित्र नेमिदत्त व्रती ने भावित किया ।। ५१ ॥ इस प्रकार मुमुक्ष श्रीविद्यानन्दिविरचित पञ्चनमस्कार माहात्म्यप्रदर्शन श्री सुदर्शन चरित में सुदर्शनमहामुनि की मोहलक्ष्मी प्राप्ति ध्यावर्णन नामक बारहवाँ अधिकार समाप्त हुआ ! ॥ शुभं भवतु ॥ संवत् १५९१ वर्षे आषाढ़ मासे शुक्लपक्षे ।
SR No.090479
Book TitleSudarshan Charitram
Original Sutra AuthorVidyanandi
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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