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________________ अष्टमोऽधिकारः अनन्तर सेठ के पुण्य पाक्न महाशील के प्रभाव को सुनकर राजा की रानी भय से त्रस्त होकर पापकर्म से, दुर्बुद्धि गले में पाश डालकर मरकर दुष्टात्मा पापकारिणी व्यन्तर देव हुई ।। १-२ ॥ धृष्टमानस उस पण्डिता धाय ने भी चम्पापुरी से भागकर पाटलीपुत्र में आकर वहाँ पर स्थित देवदत्तिका नामक, वेश्या से अपना चरित्र कहा । वेश्या ने भी उसे सुनकर धाय से गर्व से कहा ।। ३-४ ॥ __मूढ़ मन वाली कपिल मातमी वा वागत है जो नई अभया क्या अधिक चातुरी जानती है ? || ५ || ___काम रस की कूपी, कामशास्त्र प्रवीण और संसार को ठगने में तत्पर मैं सब जानती हैं ॥ ६॥ मेरे कटाक्षरूपी बाणों के समूह ने जो हरि आदि मारे गए और व्रतादिक छोड़कर भाग गए ( उनके सामने ) तुम्हारा वणिक् पुत्र कौन होता है ? ॥७॥ उर्वशी ने जिस प्रकार ब्रह्मा का सेवन किया था, उसी प्रकार मैं अनुत्तर सुदर्शन का अपनी इच्छा से यदि प्रगाढ़ सेवन करती हूँ तो मैं देवदत्तिका हूँ ॥ ८॥ उसके सामने दुष्ट बुद्धि वाली उस गणिका ने इस प्रकार प्रतिज्ञा की। सच है, कामातुर नारी पुरुषों के अन्तर को नहीं जानती है ।। २ ।। ___ जन्मान्ध व्यक्ति जिस प्रकार रूप को नहीं जानता है, मतवाला व्यक्ति जिस प्रकार तत्त्व के लक्षण को नहीं जानता है, उसी प्रकार अन्य कामी शीलवानों की स्थिति को नहीं जानता है ।। १०॥ __ अनन्तर राजा यक्ष के कहने के अनुसार अपनी स्त्री के सुनिश्चित दुराचार को सुनकर पश्चाताप कर, हाय दृष्ट स्त्री से वञ्चित, विचार शून्य मुझ मूढचित्त ने साधु को पीड़ित किया ।। ११-१२॥ . इस प्रकार शीघ्र ही अपने मन में विचार कर, भक्तिपूर्वक सुदर्शन को प्रणाम कर जोर देकर कहता है-हे पुरुषोत्तम ! ।। १३ ।। अज्ञान से युक्त मैंने तुम्हें वधादिकृत दोष दिया है। फिर भी मेरे इस दुराचार के विस्तार को आप क्षमा करें ॥ १४ ॥ सु०-६
SR No.090479
Book TitleSudarshan Charitram
Original Sutra AuthorVidyanandi
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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