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________________ सप्तमोऽधिकार: १२५ क्षय करने वाले उस युद्ध में शूर शूरों से, अश्वारोहो अश्वारोहियों से, दण्डधारी दण्डधारियों से तथा तलवार धारण करने वाले खड्गधारियों से लड़ रहे थे ।। १३२ ॥ उस बड़े संग्राम में राजा के यशोराशि के समान उज्ज्वल छत्र को देव ने ध्वज सहित तोड़ दिया ।। १३३ ।। जिस प्रकार सिंहमाद से डरा हुआ मतवाला भी सिंह भाग जाता है उसी प्रकार जिसके प्राण सन्देह में पड़ गए हैं, ऐसा राजा डरकर भाग गया ।। १३४ ॥ ____यक्ष निष्ठुर स्वरों में धमकाता हुआ उसके पीछे लग गया 1 तुम बेचारे मेरे आगे प्राण रक्षा के लिए कहाँ जाते हो ? ।। १३५ ।। स्त्री से ठगे गए रे रे दुष्ट, व्यर्थ में ही तुमने व्रतधारी सेठ के ऊपर कष्टकर उपसर्ग कराया ।। १३६ ।। यदि तुम्हें जीने की अभिलागण हो र लिने मान के चणकारलों की सार रूप सेवा को करने वाले सेठ को शरण में जाओ ।। १३७ ।। तब राजा उस सुदर्शन को शरण में गया। (उसने कहा कि) हे श्रेष्ठ ! शरणागत मेरी शीघ्न रक्षा करो, रक्षा करी ।। १३८ । ताडित और तापित होने पर भी स्वर्ण के समान सुशोभित छवि वाले सपीडित सज्जन लोग मद्ता का परित्याग नहीं करते हैं ।। १३९ ।। परमेष्ठी के समान प्रसन्न बुद्धिबाले उस सेठ ने उस बात को सुनकर अपने हाथ में लीन हो उस राजा को उठाकर और आश्वस्त कर, उसकी रक्षा करने के लिए उस यक्ष से पूछा-आप कौन हैं ? तब अक्षदेव शीघ्र सेठ को प्रणाम कर, अभयमती के किए हुए और अपने आगमन के विषय में बतलाकर अपने सार रूप प्रभाव से उस सब सेना को उठाकर, स्वर्णमयी दिव्य वस्त्रादिक से सुदर्शन की पूजा कर जिनधर्म के प्रभाव को भलीभाँति प्रकाशित कर सुखपूर्वक चला गया ।। १४३-१४३ ।। सच बात है, श्रीमज्जेिन्द्र द्वारा कथित धर्म कर्म में तत्पर कौन शीलवन्त इस संसार में उत्तम देवों के द्वारा पूज्य नहीं हैं ? ।। १४४ ॥५.
SR No.090479
Book TitleSudarshan Charitram
Original Sutra AuthorVidyanandi
AuthorRameshchandra Jain
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages240
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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